सिकन्दर ने 327 ई. पू. में भारत की ओर प्रस्थान किया। वह सम्पूर्ण एशिया पर विजय प्राप्त करना चाहता था। उस समय भारत का उत्तर-पश्चिमी भाग 25 राज्यों में बँटा था। इनमें से कुछ गणतंत्र थे तथा कुछ राज्यों में राजतंत्रात्मक व्यवस्था थी। राजतंत्र के शासक गणतंत्रों से विरोध रखते थे। इस राजनैतिक अस्थिरता के वातावरण में सिकन्दर ने अपने स्वप्न को साकार करने हेतु भारत में प्रवेश करने की योजना बनाई जिसमें उसने निम्नलिखित सैनिक अभियान किये-
1. अश्मकों से मुठभेड़: भारत की उत्तरी-पश्चिमी सीमा पर सबसे पहले उसका सामना अश्मकों से हुआ। अश्मकों ने जबरदस्त प्रतिरोध किया। उन्होंने सिकन्दर की सेना के दाँत खट्टे कर दिए लेकिन अन्त में सिकन्दर विजयी रहा। सिकन्दर ने चालीस हजार अश्मकों को बन्दी बनाया।
2. नीसा वाले गौरियों पर आक्रमण: अश्मकों पर विजय पाने के पश्चात् सिकन्दर ने नीसा वाले गौरियों पर आक्रमण किया। उन्होंने प्रतिरोध किये बिना आत्मसमर्पण कर दिया।
3. अश्वकायनों पर विजय: अश्वकायनों पर सिकन्दर द्वारा आक्रमण करने पर वहाँ के शासक अष्टक ने अपने अजेय दुर्ग मस्सग से प्रतिरोध करने का निश्चय किया। प्रारम्भ में सिकन्दर को सफलता नहीं मिली परन्तु प्रतिरोध के दौरान राजा की मृत्यु हो जाने पर अश्वकायनों का राज्य सिकन्दर के अधिकार में आ गया।
4. पौरव राज्य पर आक्रमण: तक्षशिला के राजा आंभी ने सिकन्दर से मित्रता कर उसे पौरव राज्य पर आक्रमण करने के लिए प्रोत्साहित किया। सिकन्दर ने पौरव राज्य पर आक्रमण किया। वहाँ के शासक पोरस ने वीरता से सिकन्दर की सेना का मुकाबला किया। प्रारम्भ में सिकन्दर की सेना को विजय नहीं मिली परन्तु अन्त में राजा पोरस को सिकन्दर के सैनिकों ने बन्दी बना लिया। सिकन्दर द्वारा पोरस से यह पूछने पर कि उसके (राजा पोरस के) साथ कैसा व्यवहार किया जाए तो उत्तर में पोरस ने कहा जैसा एक राजा को दूसरे राजा के साथ करना चाहिए। सिकन्दर पोरस की निर्भीकता से प्रसन्न हुआ तथा उसने पोरस से मित्रता कर उसका राज्य वापस लौटा दिया।
5. उत्तरी-पूर्वी पंजाब पर विजय तथा भारत में प्रवेश: सिकन्दर ने उत्तरी – पूर्वी पंजाब के छोटे – छोटे राज्यों पर अधिकार किया तथा भारत के भीतरी भागों की ओर बढ़ने लगा लेकिन व्यास नदी तक पहुँचकर सिकन्दर की सेना ने आगे बढ़ने से इंकार कर दिया। उत्साहहीन सैनिकों की मनोदशा के चलते सिकन्दर को मजबूर होकर वापस लौटना पड़ा।