कुषाणों के काल में व्यापार में अभूतपूर्व वृद्धि के कारण भारत आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न राष्ट्र बन गया था और लोगों ने आर्थिक जीवन में समृद्धि के संकेत दिखने लगे। इस काल में स्थल मार्गों एवं नदी मार्गों के विकास ने जहाँ आन्तरिक व्यापार में वृद्धि की वहीं समुद्री मार्गों ने विदेशी व्यापार को सुदृढ़ता प्रदान की।
कुषाणों के काल में हुई आर्थिक प्रगति का अध्ययन हम निम्न बिन्दुओं के आधार पर कर सकते हैं-
1. कुषाणों के काल में मध्य एशिया व पश्चिम एशिया को जाने वाले विभिन्न मार्गों का विकास हुआ जिससे व्यापार करने में सुविधा हुई
2. कुषाणों ने रेशम मार्ग पर नियंत्रण कर लिया जो चीन से चलकर मध्य एशिया होते हुए रोमन साम्राज्य तक पहुँचता था। यह रेशम मार्ग कुषाणों का बहुत बड़ा आय का स्रोत था।
3. रेशम मार्ग पर नियंत्रण हो जाने से भारत के व्यापारी दक्षिणी अरब और लाल सागर क्षेत्रों से जुड़ गए थे जिसके फलस्वरूप भारत की रोमन साम्राज्य के साथ समृद्धि में वृद्धि हुई।
4. भारतीय व्यापारी चीन से रेशम खरीदकर रोमन साम्राज्य के व्यापारियों तक पहुँचाते थे जिससे उन्हें लाभ होता था।
5. भारत से हाथी दाँत का सामान, काली मिर्च, लौंग, मसाले, सुगन्धित पदार्थ और औषधियाँ, सूती व रेशमी वस्त्र बड़ी मात्रा में रोम निर्यात किये जाते थे। रोम से प्रति वर्ष लाखों की स्वर्ण मुद्राएँ भारत आने लगीं
6. चीन रोम के अतिरिक्त भारत का व्यापार बर्मा, जावा, सुमात्रा, चम्पां आदि दक्षिण-पूर्वी एशिया देशों के साथ भी था।
7. कुषाण शासकों ने बड़ी संख्या में सोने के सिक्के चलाए। मुद्रा एवं व्यापार के कारण देश में कई नगरों का विकास
हुआ।
8. कनिष्क ने कनिष्कपुर, सिरमुख सहित अनेक नगरों की स्थापना की। पुरुषपुर या पेशावर उसकी प्रथम और मथुरा उसकी द्वितीय राजधानी थी जो कुषाणकालीन समृद्धि का प्रतीक बन गई थी।
इस प्रकार उपर्युक्त गतिविधियों से स्पष्ट होता है कि कुषाण काल में आर्थिक क्षेत्र में सराहनीय प्रगति हुई जिसने इस साम्राज्य को चरमोत्कर्ष पर पहुँचाया।