भारत में आर्थिक न्याय की व्यावहारिक स्थिति - भारत में आर्थिक विषमता को समाप्त करने तथा आर्थिक न्याय की स्थापना के सतत् प्रयास किये जाते रहे हैं। आर्थिक न्यायं की संकल्पना को व्यवहार में सफल बनाने के लिए संविधान में कई प्रावधान किये गये हैं। इस संबंध में अनुच्छेद 39 सर्वाधिक उल्लेखनीय है। नीति निर्देशक तत्व भी आर्थिक न्याय को सुनिश्चित करते हैं।
आर्थिक न्याय की स्थापना के उद्देश्य से ही जमींदारी प्रथा व प्रिवीपर्स को समाप्त कर दिया गया। विकास दर – इन सभी प्रयासों तथा अन्य व्यवस्थाओं एवं योजनाओं के परिणामस्वरूप आज वस्तुस्थिति यह है कि भारत विश्व का सबसे तीव्र विकास दर वाला देश बन गया है। वित्तीय वर्ष 2015-16 में भारत की विकास दर 7.6 प्रतिशत थी जो कि चीन की 6.7 प्रतिशत विकास दर से आगे है। विमुद्रीकरण – पुरानी मुद्रा को कानूनी तौर पर समाप्त कर देना विमुद्रीकरण कहलाता है। प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी जी ने 500 व 1000 के नोटों का विमुद्रीकरण कर दिया है।
यह कदम कालाबाजारी, तस्करी एवं आतंकवाद आदि गतिविधियों पर नियन्त्रण हेतु उठाया गया। आशा है कि विमुद्रीकरण के ठोस निर्णय के बाद आगामी वर्षों में भारत की विकास दर 8-9 प्रतिशत हो सकती है। देश की विकास दर में वृद्धि के बावजूद आर्थिक विषमता एवं उससे जुड़ी हुई समस्यायें अभी भी बनी हुई हैं। आर्थिक न्याय की स्थापना तभी हो सकती है जबकि आर्थिक विकास का समुचित लाभ सभी वर्गों को प्राप्त हो विकास दर बढ़ने पर व्यावहारिक स्थिति यह है कि धनी अधिक धनी तथा निर्धन अधिक निर्धन हो रहे हैं।
डिजिटल डिवाइड - देश की विकास दर में सन्तोषजनक वृद्धि हुई है किन्तु उसका लाभ शहरों तक ही सीमित रहा है। भारत के गाँवों में जहाँ लगभग 65 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है, वहाँ के लोग अभी भी भीषण अभावों से जूझ रहे हैं। इन्टरनेट व प्रौद्योगिकी का अभी तक गाँवों में अपेक्षित प्रसार नहीं हो पाया है। गाँव व शहर में भेद करने वाली इस परिघटना को डिजिटल डिवाइड के नाम से जाना जाता है।
मेक इन इण्डिया- भारत में निर्माण व उत्पादन क्षेत्र लम्बे समय से पिछड़ रहे थे लेकिन मेक इन इण्डिया परियोजना एवं विदेशी निवेश की सम्भावना से ये क्षेत्र आने वाले समय में शहरों व गाँवों दोनों में रोजगार व ढाँचागत सुधार लाने में सार्थक सिद्ध हो सकता है। भ्रष्टाचार नियन्त्रण का भी इस पर सकारात्मक प्रभाव होगा। स्टार्ट अप इण्डिया – स्टार्ट अप इण्डिया योजना के परिणामस्वरूप ई-कॉमर्स के क्षेत्र में भी आमूलचूल परिवर्तन आने की सम्भावनाएँ हैं जिसका लाभ अप्रत्यक्ष रूप से गरीबों को भी प्राप्त होगा।