राज्य के नीति निर्देशक तत्व: राज्य के नीति निर्देशक तत्त्वों का तात्पर्य है कि हमारे संविधान द्वारा कुछ ऐसे आधारभूत तत्त्व निश्चित किए गए हैं, जिनके अनुसार राज्य को अपनी नीतियाँ निर्धारित करनी होती हैं। दूसरे शब्दों में, राज्यों के नीति निदेशक तत्त्वों का आशय उन आदेशों से है जो इस बात की ओर संकेत करते हैं कि राज्य की नीतियाँ क्या होनी चाहिए? यह तत्त्व नागरिकों को ऐसी सुविधाएँ उपलब्ध कराते हैं जिनकी प्राप्ति नागरिकों के व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक हैं।
नीति -निर्देशक तत्त्वों व मौलिक अधिकारों में अन्तर:
क्षेत्र के आधार पर: मौलिक अधिकारों का संबंध केवल राज्यों में रहने वाले व्यक्तियों से है जबकि निर्देशक तत्वों का सम्बन्ध अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र से भी है। इस प्रकार मौलिक अधिकारों की अपेक्षाकृत निर्देशक तत्वों का क्षेत्र अधिक व्यापक है।
उद्देश्य के आधार पर: मौलिक अधिकारों के अंतर्गत जो अधिकार नागरिकों को प्रदान किए गए हैं, वे देश में राजनीतिक लोकतंत्र की स्थापना करते हैं परन्तु राज्य नीति निर्देशक तत्वों में जो सिद्धान्त दिए गए हैं, उनका लक्ष्य आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना करना है ताकि राजनीतिक लोकतंत्र को सफल बनाया जा सके।
स्वरूप के आधार पर: मौलिक अधिकारों का स्वरूप निषेधात्मक है जबकि निर्देशक तत्व सकारात्मक हैं।
अन्य आधार पर:
- मौलिक अधिकार व्यक्ति से संबंधित हैं जबकि निर्देशक तत्व समाज से संबंधित हैं।
- मौलिक अधिकार नागरिकों को प्राप्त हो चुके हैं जबकि निर्देशक तत्वों को अभी तक पूर्णत: व्यावहारिक रूप प्रदान नहीं किया जा सका है।
- मौलिक अधिकार वाद योग्य हैं जबकि निर्देशक तत्व वाद योग्य नहीं हैं।
- मौलिक अधिकार नागरिकों के कानूनी अधिकार हैं जबकि निर्देशक तत्व समाज के नैतिक बंधन हैं।
- मौलिक अधिकार व्यक्ति के व्यक्तिगत अधिकार हैं जबकि निर्देशक तत्व राज्य की नीतियों के निर्धारण में पथ प्रदर्शक हैं।
- मौलिक अधिकार राजनीतिक लोकतंत्र के प्रतीक हैं जबकि नीति निर्देशक तत्व सामाजिक व आर्थिक लोकतंत्र के प्रतीक हैं।