भारतीय गठबंधन की राजनीति की प्रमुख विशेषताएँ- भारतीय गठबंधन की राजनीति की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित है:
(1) एक दल की प्रधानता – भारतीय राजनीति में जो गठबंधन निर्मित हुए हैं उनमें एक दल की ही प्रधानता रही है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एन.डी.ए) का नेतृत्व भारतीय जनता पार्टी कर रही है तो संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यू.पी.ए) का नेतृत्व भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पास है। सहयोगी दल बहुत अधिक प्रभावी भूमिका निभाने में असमर्थ हैं।
(2) विचारधारागत समानता को अभाव – राजनीतिक लाभ के लिए विरोधी विचारधारा के राजनीतिक दल गठबंधन में सम्मिलित हो जाते हैं। चुनावों में एक दूसरे की कार्य पद्धति की आलोचना करने वाले दल निहित लाभ के लिए एक गठबंधन में शामिल हो जाते हैं। उदाहरण के लिए बिहार में जय प्रकाश नारायण को आदर्श मानने वाली समता पार्टी कांग्रेस के साथ गठबंधन बना कर चुनाव लड़ती है जबकि जय प्रकाश नारायण के विचार कांग्रेस की नीतियों से कहीं मेल नहीं खाते हैं। वस्तुतः गठबंधनों का आधार विचारधारा न होकर केवल सत्ता प्राप्त करना अथवा किसी को सत्ता के आने से रोकना है।
(3) स्थायित्व का अभाव – गठबंधन में स्थायित्व का अभाव देखने को मिलता है। कई बार राजनीतिक दल अपने लाभ के लिए एक गठबंधन को छोड़कर दूसरे गठबंधन से जुड़ जाते हैं। उदाहरण के लिए पश्चिमी बंगाल के चुनावों को देखकर तृणमूल कांग्रेस ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एन.डी.ए) छोड़ दिया। वहीं कभी समता पार्टी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का हिस्सा थी। लेकिन उसने बिहार विधानसभा चुनावों में इसका साथ छोड़कर कांग्रेस से गठबंधन कर लिया था।
(4) गठबंधन - राजनीतिक सिद्धान्त व विचारधारा की अपेक्षा नेताओं के आधार पर- भारतीय राजनीति में गठबंधन राजनीति सिद्धान्त तथा विचारधारा के अपेक्षी नेताओं के आधार पर होता है। उदाहरण के लिए समाजवादी विचार रा होने के बावजूद समता पार्टी का गठबंधन राष्ट्रीय जनता दल से होने के बजाय भारतीय जनता पार्टी से था। जब श्री नरेन्द्र मोदी को भारतीय जनता पार्टी ने अपना नेता घोषित किया तो समता पार्टी ने उससे गठबंधन तोड़ लिया।
(5) गठबंधनों में स्पष्ट विचारधारागत अलगाव को अभाव – भारतीय राजनीति में इस समय दो ही गठबंधन महत्वपूर्ण तथा प्रभावशाली हैं। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एन.डी.ए) जो भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में चलता है। दोनों गठबंधनों में विचारधारागत एवं सैद्धान्तिक अन्तर खोजना कठिन है। तीसरा मोर्चा जो मूलतः वामपंथी प्रभाव का धड़ा है। कांग्रेस तथा भारतीय जनता पार्टी को पूँजीवादी मानता है, लेकिन इसने मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यू.पी.ए सरकार को बाहर से समर्थन दिया था।
(6) दबाव की राजनीति – गठबंधन में शामिल राजनीतिक दल अपने राजनीतिक हितों को पूर्ति के लिए प्रधानमंत्री पर निरन्तर दबाव डालते रहते हैं। उदाहरण के लिए संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यू.पी.ए.) में सम्मिलित तृणमूल कांग्रेस पार्टी की नेता ममता बनर्जी ने अपने दल के कोटे से केन्द्रीय मंत्री-परिषद में शामिल रेल मंत्री को बदलने एवं रेल का बढ़ा हुआ किराया वापस लेने के लिए पिछली मनमोहन सिंह सरकार को मजबूर कर दिया था। इस दबाव की राजनीति से कई बार राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर क्षेत्रीय हित हावी हो जाते हैं।
(7) निषेधात्मक आधार पर गठित राजनीतिक गठबंधन – स्वतन्त्रता के पश्चात् से ही एक लमबे समय तक कांग्रेस केन्द्र व राज्यों में सरकार में रही है। भारतीय राजनीति में पहले कांग्रेस को सत्ता से बाहर रखने के लिए गठबंधन किया जाता था। 1977 की जनता पार्टी का गठन भी कांग्रेस के विरुद्ध किया गया था। वर्तमान में जनता दले, समाजवादी पार्टी, बसपा तथा समता पार्टी अपना एक ही घोषित एजेन्डा बताती हैं। भाजपा को सत्ता से बाहर रखना। किसी दल के कार्यक्रम या नेतृत्व या विचारधारा का मात्र विरोध के लिए विरोध लोकसभा के स्वास्थ्य के लिए अच्छा लक्षण नहीं कहा जा सकता।
(8) दल-बदल की प्रकृति – गठबंधन सरकारों के कारण भारतीय राजनीति में दल-बदल की प्रवृत्ति देखने को मिलती है। दल-बदल सरकारों के बनने व बिगड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इससे शासन के स्थायित्व को निरन्तर खतरा बना रहता है।