सार्क की ढाका शिखर बैठक में लिए गए निर्णयों तथा इसके स्वरूप पर विचार विमर्श करने से पूर्व इस बात को स्पष्ट कर दिया जाना चाहिए कि इसके प्रारम्भिक नाम, दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग (SARC) को बदल कर दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) कर दिया गया था। यह एक ऐसा संगठन है जिसका उद्देश्ये दक्षिण एशियाई देशों में क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देना था।
प्रथम शिखर सम्मेलन में सार्क संगठन में सातों देशों – बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान तथा श्रीलंका की सरकारों तथा राज्यों के अध्यक्षों ने भाग लिया। इसमें सार्क (SAARC) की स्थापना की घोषणा को अपनाया गया तथा बांग्लादेश के तत्कालीन राष्ट्रपति एच. एम. इरशाद को इसका प्रथम अध्यक्ष बनाया गया।
घोषण-पत्र में संगठन के उद्देश्यों तथा इनको प्राप्त करने के सिद्धान्तों का वर्णन किया गया। सदस्य राष्ट्रों के बीच सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक तथा तकनीकी सहयोग के विकास को उद्देश्य माना गया। सभी की प्रभुसत्ता की समानता, स्वतंत्रता, अखंडता तथा अहस्तक्षेप के सिद्धान्तों को निर्देशक सिद्धान्त माना गया।
यह कहा गया कि सभी स्तरों पर निर्णय सर्वसम्मति से लिया जाएगा तथा द्विपक्षीय एवं विवादास्पद मामलों पर बातचीत नहीं की जाएगी। इसके अतिरिक्त यह भी तय हुआ कि ‘सार्क’ सदस्य राज्यों के द्विपक्षीय तथा बहुपक्षीय सहयोग का पूरक तथा सम्पूरक होगा, विकल्प नहीं। इसके संगठनात्मक स्वरूप के सम्बन्ध में घोषणा – पत्र में यह कहा गया कि राज्यों तथा सरकारों के अध्यक्ष वर्ष में एक बार बैठक करेंगे तथा सदस्य राज्यों के विदेश मंत्रियों की एक मंत्रिपरिषद् नीति-निर्माण सहयोग में उन्नति का अवलोकन करने, अतिरिक्त तंत्र की स्थापना करने तथा सामान्य हितों के मामलों पर निर्णय करने के लिए बनायी जाएगी।
इस परिषद् की स्थापना के लिए सदस्य देशों के विदेश सचिवों की एक समिति बनायी जाएगी। इसमें यह भी कहा गया कि एक तकनीकी समिति बनायी जाए, जिसमें सदस्य राष्ट्रों के प्रतिनिधि शामिल हों तथा इसका कार्य प्रोग्रामों को लागू करना, समन्वित करना तथा प्रबोधन के लिए एक कार्यवाहक समिति इन परियोजनाओं को लागू करने के लिए बनायी जाए, जिसमें दो से अधिक राज्य शामिल हों। इसमें इस बात की पुष्टि भी की गई कि संगठन के लिए एक सचिवालये भी उचित समय पर स्थापित किया जाएगा।