मानवीय अधिवासों के प्रकार व प्रतिरूप में निम्नलिखित अन्तर मिलते हैं –
1. अधिवासों के प्रकारों का निर्धारण भौतिक, सामाजिक व सांस्कृतिक कारकों के आधार पर होता है जबकि अधिवासों के प्रतिरूप का निर्धारण उनकी आकृति के आधार पर होता है।
2. अधिवासों के प्रकार को मकानों के बीच की दूरी के आधार पर निर्धारित करता है जबकि प्रतिरूप का निर्धारण मकानों से बनने वाली किसी आकृति से किया जाता है।
3. अधिवासों के प्रकार को निर्धारित करने में प्राकृतिक दशाओं व कार्यों को आधारभूत माना जाता है जबकि अधिवासों के प्रतिरूप का निर्धारण करने में कार्यों की कोई भूमिका नहीं होती है।
ग्रामीण अधिवासों के प्रकार ग्रामीण अधिवासों को उनके भौतिक, सामाजिक व सांस्कृतिक कारकों तथा सुरक्षा के आधार पर निम्नलिखित भागों में बाँटा गया है –
1. सघन या गुच्छित अधिवास
2. प्रकीर्ण या एकाकी अधिवास
3. मिश्रित अधिवास
4. पल्ली अधिवास
1. सघन या गुच्छित अधिवास: इने ग्रामीण अधिवासों को पुंजित, संहत, संकेन्द्रित, संकुलित आदि नामों से भी जाना जाता है। सघन ग्रामीण अधिवास उपजाऊ मैदानी भागों, समतल तथा पर्याप्त जल की उपलब्धता वाले क्षेत्रों में विकसित होते हैं। जिनमें आवास, गृह पास-प्स होते हैं और सम्पूर्ण गाँव सघन बसा होता है। आसान पहुँच के लिए इनके साथ सड़कों का निर्माण होता है। आवासों के साथ-साथ विद्यालय, सामाजिक व धार्मिक स्थल भी बने होते हैं।
2. प्रकीर्ण या एकाकी अधिवास: इस प्रकार के अधिवास छितरे व बिखरे होते हैं। ये आवास एक-दूसरे से दूर व कृषि भूमि को छोड़कर बनाये जाते हैं।
3. मिश्रित अधिवास: इन अधिवासों को अर्द्ध सघन या अर्द्ध केन्द्रीय अधिवास भी कहा जाता है। यह सघन व प्रकीर्ण अधिवासों के बीच की अवस्था होती है जो सामान्यतया किसी परिवार की संख्या में वृद्धि होने से आवासों की संख्या बढ़ने के कारण उत्पन्न होते हैं। इनकी उत्पत्ति में पर्यावरणीय कारणों के स्थान पर पारिवारिक कारण उत्तरदायी होते हैं।
4. पल्ली अधिवास: इस प्रकार के अधिवासों में आवास एक-दूसरे से अलग किन्तु एक ही बस्ती में बसे होते हैं। इसलिए उन सबका नाम एक रहता है। बस्ती के अलग-अलग भागों में अलग-अलग जातियों के लोग रहते हैं।