यशोधर बाबू बच्चों से अपेक्षा रखते थे कि वे उन्हें बुजुर्ग और सांसारिक जीवन का अनुभव-सम्पन्न व्यक्ति मानें, उनका सम्मान करें। घर-गृहस्थी के हर मामले में उनसे सलाह ली जाए। कोई भी काम उनसे बिना पूछे न किया जाए। बच्चे अपना वेतन भी उन्हें लाकर दें। इसके साथ ही वे चाहते हैं कि उनके बेटे घर के रोज़मर्रा के कामों में उनका हाथ बटाएँ उनकी इच्छानुसार उनकी लड़की शालीन कपड़े पहने। साथ ही वे रिश्तेदारी एवं सामाजिक कार्यों में उनका सहयोग करें, परंपराओं को निभायें, धार्मिक कार्यों के प्रति आकर्षित हों। 'सिल्वर वैडिंग' पर बड़े बेटे ने उनसे कहा कि सवेरे ऊनी ड्रेसिंग गाउन पहन कर आप दूध लाने जाया करें। यह बात यशोधर बाबू को अच्छी नहीं लगी, क्योंकि उनकी अपेक्षा थी कि वह स्वयं दूध लाने हेतु कहे।