मुअनजो-दड़ो के सारे अवशेष जमीन के अन्दर दबे पड़े हैं। केवल एक बौद्ध स्तूप सबसे ऊँचे चबूतरे पर बना हुआ है। यह चबूतरा पच्चीस फुट ऊँचा है। इस ऊँचे चबूतरे पर छब्बीस सदी पहले बनी ईंटों के दम पर स्तूप को आकार दिया गया था। चबूतरे पर भिक्षुओं के कमरे भी बने हुए हैं। सन् 1922 में जब राखालदास बनर्जी आए तब वे इसी स्तूप की खोजबीन करने के संबंध में यहाँ आए थे। उन्होंने इस स्तूप के चारों ओर खुदाई करवायी। बाद में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण के महानिदेशक जॉन मार्शल के निर्देश पर खुदाई का व्यापक अभियान हुआ है। धीमे-धीमे यह खोज विशेषज्ञों की सिंधु घाटी सभ्यता की देहरी पर ले आई। इसी से ही मुअनजो-दड़ो और सिन्धु घाटी की प्राचीनता का पता चला।