1. प्रस्तावना - युवक देश के कर्णधार होते हैं। देश और समाज का भविष्य उन्हीं पर निर्भर होता है, परन्तु आज हमारे देश की दशा अत्यन्त शोचनीय है। समाज में राष्ट्रीय चेतना, कर्त्तव्यबोध, नैतिकता आदि की कमी है। स्वार्थ बढ़ा - चढ़ा है। अनुत्तरदायित्व फैलता जा रहा है। दिखावा एवं अन्धविश्वास अभी भी समाज को जकड़े हुए हैं। ऐसी स्थिति में युवकों का दायित्व निश्चित ही बढ़ जाता है।
2. युवा पीढ़ी का वर्तमान रूप - वर्तमान में हमारा सामाजिक ढाँचा अस्त - व्यस्त हो रहा है। इसे अच्छी तरह से व्यवस्थित करने का दायित्व युवकों पर ही है, किन्तु आज की युवा पीढ़ी की दशा भी शोचनीय है। युवा पीढ़ी में कुण्ठा, निराशा, दायित्वहीनता आदि अधिक व्याप्त है। समाज की परम्परागत मान्यताएँ उन्हें स्वीकार नहीं हैं, पाश्चात्य भौतिकतावाद का प्रभाव उन पर अधिक है। इसलिए वे भारतीय भूमि पर पाश्चात्य सभ्यता का ढाँचा खड़ा करना चाहते हैं। शिक्षा का अर्थ उनकी निगाह में केवल डिग्री लेकर नौकरी प्राप्त करना रह गया है।
3. युवा - वर्ग का दायित्व - अतः युवा पीढ़ी का जहाँ समाज के प्रति दायित्व है, वहीं अपने प्रति भी उसे कुछ सावधानी बरतनी है। पहले युवक - युवती स्वयं को सुधारें, स्वयं को शिक्षित करें, स्वयं जिम्मेदार बनें, स्वयं को चरित्रवान् बनायें, तभी वे देश की प्रगति एवं समाज के पुनर्निर्माण में सहयोगी बन सकते हैं। समाज में शान्ति और सुव्यवस्था बनाए रखना युवाशक्ति का प्रमुख दायित्व है। विनाशकारी तत्त्वों की रोकथाम युवकों के सहयोग से ही सम्भव है। वे हड़ताल, आगजनी, तोड़ - फोड़ आदि को रोकें, ताकि सामाजिक वातावरण नहीं बिगड़े।
समाज में मानवीय मूल्यों, सांस्कृतिक आदर्शों एवं नैतिकता की मर्यादाओं को बनाये रखना भी उनका कर्तव्य है। वे निष्ठापूर्वक अध्ययन करें। गलत साहित्य न पढ़ें। समाज में बेईमानी करने वालों का विरोध करें। इसी भाँति युवकों को चाहिए कि वे थोड़े - से स्वार्थ के लिए राजनीति के कुचक्रों में न फँसें। वे भ्रष्ट राजनीति का विरोध करें, साथ ही शासन - तन्त्र में व्याप्त भ्रष्टाचार, लालफीताशाही, स्वार्थपरता आदि बुराइयों के निवारण के लिए भी सचे पीढ़ी चरित्रहीनता और पश्चिमी भौतिकतावाद के प्रभाव से स्वयं को बचाकर रखे।
4. उपसंहार - अतः सभी बुराइयों से मुक्त रहकर युवा पीढ़ी समाज और राष्ट्र के प्रति अपने दायित्वों को पूरा कर सकती है। इसी दशा में हमारा समाज सुखमय बन सकत युवा - शक्ति. का समुचित उपयोग हो सकता है। वस्तुतः युवाशक्ति से ही राष्ट्र का सर्वतोमुखी विकास हो सकता है। सामाजिकता एवं देशभक्ति की भावना रखकर युवक अपने राष्ट्र के नव - निर्माण में प्रभावी योगदान कर सकते हैं।