(अ) कवि ने यह सन्देश दिया है कि चाहे प्राणों का बलिदान करना पड़े और अपरिमित कष्ट सहना पड़े, परन्तु व्यक्ति को अपनी आन नहीं छोड़नी चाहिए।
(ब) संसार में जो लोग शान्ति, क्षमाशील, सहिष्णुता, विराग, इन्द्रिय-संयम, धैर्य, अक्रोध, विनय आदि को श्रेष्ठ आचरण मानते हैं, वे लोग सदा अपमान सहते हैं।
(स) जो लोग मृत्यु से न डरकर आत्मसम्मान की रक्षार्थ मर-मिटने को उद्यत रहते हैं, उनका जीवन यशस्वी माना जाता है।
(द) अपमानित होकर भी क्रोध न करना तथा सदा विनयशील बने रहना इसमें विजय का रहस्य निहित है, किन्तु अपमान सहना भी सर्वथा अनुचित है।
(य) व्यक्ति के सामने भयानक संकट आ जाने या जान भी देनी पड़े, तो भी अपने स्वाभिमान की रक्षा करनी चाहिए।
(र) काव्यांश का मूलभाव है-अपनी आन-बान और शान बनाए रखकर स्वतन्त्र जीवन जीना तथा इसके लिए प्राणोत्सर्ग करने की प्रेरणा देना।