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निम्नांकित अपठित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :

बैठे हुए हो व्यर्थ क्यों? आगे बढ़ो, ऊँचे चढ़ो,
है भाग्य की क्या भावना? अब पाठ पौरुष का पढ़ो।
है सामने का ग्रास भी मख में स्वयं जाता नहीं।
हाँ, ध्यान उद्यम का तुम्हें तो भी कभी आता नहीं।
जो लोग पीछे थे तुम्हारे बढ़ गये हैं बढ़ रहे,
पीछे पड़े तुम देव के सिर दोष अपना मढ़ रहे।
पर कर्म-तैल बिना कभी विधि-दीप जल सकता नहीं,
है दैव क्या? साँचे बिना कुछ आप ढल सकता नहीं।
आओ, मिलें सब देश-बान्धव हार बनकर देश के,
साधक बनें सब प्रेम से सुख शान्तिमय उद्देश्य के।
क्या साम्प्रदायिक भेद से है ऐक्य मिट सकता अहो,
बनती नहीं क्या एक माला विविध सुमनों की कहो।

(अ) जीवन में प्रगति के लिए किस भावना की जरूरत होती है?
(ब) आपसी एकता के लिए क्या करना अपेक्षित रहता है?
(स) इस काव्यांश में कवि ने किन्हें सम्बोधित किया है और क्यों?
(द) "बनती नहीं क्या एक माला विविध सुमनों की"-इस पंक्ति में कवि का क्या आशय है?
(य) कवि ने किन्हें पौरुष का पाठ पढ़ने के लिए कहा है?
(र) "पर कर्म-तैल बिना कभी विधि-दीप जल सकता नहीं" इस पंक्ति में कौनसा अलंकार है, उसकी परिभाषा भी दीजिए।

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(अ) जीवन में प्रगति के लिए भाग्यवादी एवं आलसी प्रवृत्ति तथा अविवेक को त्याग कर उद्यमी एवं पुरुषार्थी भावना की जरूरत होती है।

(ब) परस्पर भाईचारे का व्यवहार रखें, धार्मिक कट्टरता एवं साम्प्रदायिक भेदभाव को त्यागें और सह अस्तित्व का आचरण अपनाना चाहिए।

(स) इस काव्यांश में कवि ने सभी भारतीयों को सम्बोधित किया है, क्योंकि कवि चाहता है कि सभी भारतीय परस्पर एकता, बन्धुता, मैत्री एवं सहयोग रखकर देश की प्रगति में सहभागी बनें।

(द) कवि का आशय है कि अविवेक, स्वार्थ, आलस्य एवं मतभेदों को त्याग कर सभी भारतीय आपसी मेल जोल और भाईचारे से रहें, इससे देश का हित किया जा सकता है।

(य) कवि ने आलसी लोगों को पौरुष का पाठ पढ़ने के लिए कहा है।

(र) इस पंक्ति में रूपक अलंकार है, परिभाषा उपमेय पर जब उपमान का आरोप कर दिया जाता है तब रूपक अलंकार होता है।

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