मूलदाब (Root pressure) के प्रभाव से कुछ पादपों की पत्तियों के किनारों तथा शीर्ष से जल की बूंदें स्रावित होती हैं। इस क्रिया को बिन्दु स्राव (Guttation) कहते हैं। इसका अध्ययन बर्गरस्टीन (Burgerstein, 1887) ने किया था। आलू, अरबी, ब्रायोफिल्लम, कुछ घासों आदि अनेक पौधों की पत्तियों पर सुबह के समय बिन्दु स्राव स्पष्ट दिखायी देता है।

जल की यह क्षति पत्तियों के शिराओं के अन्त (Veins endings) पर स्थित छोटे-छोटे छिद्रों से होती है जिन्हें जलरन्ध्र (Hydathodes) कहते हैं। प्रत्येक जलरन्ध्र के शीर्ष पर एक छिद्र पाया जाता है जिसे जलछिद्र (Water pore) कहते हैं। इस छिद्र के चारों ओर स्थित कोशिकाओं में कोई गति नहीं होती है। अतः ये सदैव खुले रहते हैं। जल रन्ध्र से अन्दर की ओर मृदूतक (Parenchyma) कोशिकाओं का समूह होता है जो ऐपिथेम (Epithem) ऊतक कहलाता है। एपिथेम अन्दर की ओर पत्ती की शिराओं की जाइलम वाहिकाओं से सम्पर्क में होता है।
जड़ द्वारा जल का अवशोषण अधिक परन्तु वाष्पोत्सर्जन की दर कम होने पर जाइलम वाहिकाओं में मूलदाब (Root pressure) उत्पन्न हो जाता है जिससे जल जाइलम वाहिकाओं से निकलकर ऐपिथेम की कोशिकाओं में स्थानान्तरित हो जाता है। इन कोशिकाओं के संतृप्त होने पर जल जलछिद्रों से बूंदों के रूप में बाहर आ जाता है। अतः मूलदाब के परिणामस्वरूप बिन्दुस्राव (Guttation) की क्रिया होती है।
बिन्दुस्राव से निकलने वाला जल शुद्ध नहीं होता है वरन् इसमें कुछ कार्बनिक पदार्थ तथा अकार्बनिक लवण घुले होते हैं।