प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित एवं पं० प्रतापनारायण मिश्र द्वारा लिखित ‘बात’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है। यहाँ लेखक बात की महत्ता बताते हुए कहता है कि जिस प्रकार का व्यक्ति होता है वह उसी प्रकार की बात करता है।
लेखक इस तथ्य से अवगत कराते हुए कहता है कि एक व्यक्ति का जो स्वभाव होगा अथवा जो जिस प्रकार का कार्य करेगा वह स्वाभाविक रूप से उसी प्रकार के वातावरण में उसी कार्य के अनुसार बुद्धिवाला हो जायेगा, फिर वह उसी से सम्बन्धित बात करेगी। उदाहरणस्वरूप यदि हम वैद्यराज को लें तो अपने स्वभावानुसार एवं कार्य के अनुरूप किसी रोग जैसे पित्त और उससे सम्बन्धित विषयों पर बात करेगा। यदि कोई भूगोल का ज्ञाता होगा तो वह अपने स्वभावानुसार किसी देश की जलवायु अथवा प्राकृतिक विषयों पर बात करेगा। परन्तु लेखक कहता है कि दोनों विषयों में बात कहने का हमारा कोई प्रयोजन नहीं है। हम लोग उसी विषय पर बात लिखते अथवा करते हैं जो हृदय की भावनाओं को वाणी के माध्यम से प्रकाशित करती है। हमारे मन की जो स्थिति है, जो भावनाएँ हमारे हृदय में प्रतिपल उठती हैं उसे यदि हम मुख से, वाणी के माध्यम से दूसरे को अवगत करायें तो वह ‘बात’ कहलाती है।