कबीर दास (Kabir Das) एक मशहूर संत, संत कवि और समाज सुधारक थे जिन्होंने 15वीं और 16वीं सदी के दौरान भारतीय साहित्य और धार्मिक विचारधारा को अद्वितीय योगदान दिया। वे वाणी के माध्यम से भक्ति, सामाजिक न्याय, विवेक, साधारणता और मानवता के सिद्धांतों को सुनियोजित करते थे। इन्होंने अपने दोहों, चौपाईयों और पदों के माध्यम से लोगों को आध्यात्मिकता और समग्र समाजिक प्रेम के संदेश दिए।
कबीर दास की भाषा शैली अद्वितीय और अलौकिक है। उनकी रचनाएं आम भाषा, भजनीय शैली और बोलचालीय व्यंग्यपूर्ण भाषा का योग हैं। उनकी भाषा सीधी, सादगीपूर्ण और व्यावहारिक होती है, जो उनके संदेश को आसानी से समझने में मदद करती है। वे अधिकांश रचनाएं अवधी और ब्रजभाषा में लिखी गई हैं, जो उनके समय की आम जनता की भाषा थी। इससे उनकी रचनाओं में सामान्यता और संबंधितता की भावना उभरती है।
कबीर दास की भाषा शैली खुले मन, अनुभवों, साहस, संवेदना और विचारों के अद्वितीय मेल को प्रकट करती है। उनके दोहों में छोटी-छोटी शब्दावली के द्वारा वे गहराई और व्यापकता को व्यक्त करते हैं। इनकी भाषा अव्यक्तिगत और अनन्त कोटिशः समस्याओं, विरोधाभासों और विवादों के प्रतीकों को छूने में सक्षम है।
कबीर दास की भाषा शैली उनकी विशिष्ट पहचान बनी हुई है और उन्हें आधुनिक हिंदी साहित्य के महान कवियों में गिना जाता है। उनके संदेश, उनकी अद्वितीय भाषा शैली के माध्यम से, आज भी मानवता को प्रेरित करते हैं और उनकी रचनाओं का महत्वपूर्ण हिस्सा बने हुए हैं।