कबीर दास ने अपनी रचनाओं में शरीर की क्षणभंगुरता (अनित्यता) को व्यक्त करने के लिए कई उपमाएं उपयोग की हैं। यहां कुछ प्रमुख उपमाएं हैं जिन्हें कबीर ने उद्धरण के रूप में उपयोग किया है:
1. बालतोड़:
यह उपमा शरीर की क्षणभंगुरता को दर्शाने के लिए प्रयुक्त होती है। कबीर कहते हैं, "जैसे बालक बालतोड़े से काम नहीं लेता, वैसे ही मनुष्य को शरीर के आधार पर भी आदर नहीं मिलता।"
2. देह धोया:
इस उपमाएं के अनुसार, शरीर की क्षणभंगुरता को उजागर किया जाता है। कबीर कहते हैं, "देह धोया, जीवन खोया, मरा रोवे संसार। जो तन का लियो तन जा ही, जिया पर तजि निर्मल प्यार।"
3. चिंगारी:
चिंगारी (आग) की उपमा भी शरीर की अस्थायित्व को बयां करती है। कबीर कहते हैं, "चिंगारी से ज्यों जले, मन भइया ज्वालामुखी।"
4. बुलबुला:
इस उपमाएं के माध्यम से, कबीर ने शरीर की क्षणभंगुरता को निरूपित किया है। उन्होंन इस उपमाएं के माध्यम से, कबीर ने शरीर की क्षणभंगुरता को निरूपित किया है। उन्होंने कहा, "यह बुलबुला अविनाशी है, इसके पाँव की बन्धी नहीं। इसकी माया पानी की बुद्धि है, यह तो खुद को गिरा देती है।"
ये उपमाएं केवल कुछ उदाहरण हैं और कबीर दास ने अपनी रचनाओं में इस विषय पर और भी कई उपमाएं उपयोग की हैं। इन उपमाओं के माध्यम से, वे शरीर की अनित्यता और जीवन के महत्व को दर्शाने का प्रयास करते हैं।