नर जनन तन्त्र (Male Reproductive System) इसे निम्न भागों में बाँटा गया है-
(1) वृषण (Testes)- यह वयस्क पुरुष में एक जोड़ी गुलाबी तथा अण्डाकार रचना होती है। जो कि उदर गुहा के बाहर दोनों टाँगों के मध्य कोषों में स्थित होते हैं। प्रत्येक वृषण कोष की गुहा से एक संकरी वंक्षण नाल (Inguinal canal) जुड़ी होती है।
(2) अधिवृषण (Epdidymis)- यह एक पतली, लगभग 6 मीटर लम्बी, अत्यधिक कुण्डलित, चपटी तथा अर्धविराम (Comma) के आकार की नलिकां है। यह नलिका शीर्ष अधिवृषण (Caput epididymis) जोकि चौड़ा तथा वृषण के ऊपरी भाग पर टिका होता है। मध्य वृषण (Corpus epididymis) जो वृषण की पश्च सतह तक फैला रहता है तथा पुच्छक अधिवृषण (Cauda epididymis) यह अन्तिम पतला भाग, जोकि वृषण के निचले भाग को ढके रहता है, इन तीन भागों में बँटी होती है।
(3) शुक्रवाहिनी (Vas deferens)-इसकी लम्बाई 45 सेमी. तक होती है। यह अधिवृषण के पिछले भाग से प्रारम्भ होकर ऊपर की ओर वंक्षण नाल से होकर उदर गुहा में मूत्राशय से होती हुई अन्त में तुम्बिका (Ampulla) का निर्माण करती है।
(4) मूत्रमार्ग (Urethra)- मूत्राशय से निकलने वाली मूत्रवाहिनी स्खलनीय वाहिनी से मिलकर मूत्र जनन नलिका या मूत्रमार्ग (Urinogenital duct or Urethra) का निर्माण करती है।
(5) सहायक जनन ग्रन्थियाँ (Accessory Reproductive Glands)-
- प्रोस्टेट ग्रन्थि (Prostate Gland),
- शुक्राशय (Seminal Vesicles) तथा
- काउपर की ग्रन्थि (Cowper’s Gland) ये तीनों ही नर में सहायक ग्रन्थियाँ होती हैं। ये ग्रन्थियाँ अपने स्रावों को मूत्रमार्ग में छोड़ती हैं। जिनके द्वारा वीर्य (Semen) का निर्माण होता है।
(6) शिश्न (Penis)- यह वृषण कोषों के बीच में उदर से लटका हुआ एक लम्बा, बेलनाकार (Cylindrical) उच्छायी (Erectile) तथा अत्यधिक संवहनी (Richly vascularized) मैथुन अंग होता है।
