यह एक सहलग्न रोग है। इस रोग से पीड़ित व्यक्ति हरे एवं लाल रंगों में अन्तर नहीं कर पाता है। ऐसे व्यक्ति को वर्णान्ध कहते हैं। अलग-अलग लोगों में अलग-अलग प्रकार की वर्णान्धता पायी जाती है। किन्तु लाल-हरे रंग की वर्णान्धता के रोगी अधिक मिलते हैं अर्थात् जो लाल एवं हरे रंग में कोई विभेद नहीं कर पाते हैं।
मनुष्य के X क्रोमोसोम पर रंगा कोशिकाएँ (Cover) बनाने के जीन पाये जाते हैं। ये जीन रेटिना में रंग विभेद करने वाली कोशिकाओं के बनने पर नियन्त्रण रखते हैं। इस जीन के स्थान पर इसका अप्रभावी विकल्पी आ जाता है तो रंग विभेद करने वाली कोशिकाओं का निर्माण नहीं होता है। इससे व्यक्ति में वर्णान्धता का रोग हो जाता है। यह रोग पुरुषों में अधिक होता है क्योंकि पुरुषों में केवल एक X गुणसूत्र होता है। जबकि स्त्री में दो X क्रोमोसोम पाये जाते हैं, जिससे स्त्री स्वयं इस रोग से पीड़ित नहीं होती है बल्कि वह वाहक की भूमिका निभाती है।