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लिंग-सहलग्न वंशागति से आप क्या समझते हैं? वर्णान्धता एवं हीमोफिलिया रोग के सन्दर्भ में इसे समझाइए।

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लिंग-सहलग्न गुण तथा इनकी वंशागति (Sex-linked Characters and their Inheritance)

एकलिंगी प्राणियों में दो प्रकार के गुणसूत्र पाए जाते हैं-

(i) समजात या दैहिक गुणसूत्र-(Somatic chromosomes or autosomes)

(ii) लैंगिक गुणसूत्र (Sex chromosomes or allosomes)

लैंगिक गुणसूत्रों पर कुछ दैहिक लक्षणों के जीन भी विद्यमान होते हैं। ऐसे लक्षणों को लिंग-सहलग्न लक्षण कहते हैं तथा इनकी वंशागति लिंग-सहलग्न वंशागति (Sex-linked inheritance) कहलाती है। मनुष्य में 120 लिंग-सहलग्न लक्षणों की खोज हो चुकी है।

सामान्य लिंग-सहलग्न लक्षण तथा इनकी वंशागति (Common Sex-linked Characters and their Inheritance) सामान्यतया X-सहलग्न अप्रभावी लक्षण ही सामान्य लिंग-सहलग्न लक्षण होते हैं; जैसे-वर्णान्धता तथा हीमोफीलिया Y-लिंग गुणसूत्र पर इसका दूसरा (प्रभावी) युग्मविकल्पी ऐलील (Allele) उपस्थित नहीं होता। अतः ये लक्षण सामान्यतया पुरुषों में ही प्रदर्शित होते हैं।

स्त्री में जब तक दोनों लिंग गुणसूत्रों पर लिंग-सहलग्न लक्षण के अप्रभावी जीन उपस्थित नहीं होते, लक्षण प्रकट नहीं होते। एक Xगुणसूत्र पर यह जीन होने पर स्त्री केवल उसकी वाहक (Carrier) ही होगी।

वर्णान्धता की वंशागति (Inheritance of Colour blindness) यह मनुष्य में पाया जाने वाला लिंग-सहलग्न रोग है। एक अप्रभावी जीन की उपस्थिति के कारण व्यक्ति लाल वे हरे रंग में विभेद करने में असमर्थ रहता है। लाल रंग की वर्णान्धता प्रोटेनोपिया (Protanopia) तथा हरे रंग की वर्णान्धता ड्यूटेरानोपिया (Deuteranopia) कहलाती है।

वर्णान्धता (Colour blindness)
वर्णान्धता एक लिंग सहलग्न (Sex linked) अप्रभावी विकार (recessive disorder) है। यह लाल अथवा हरे रंग संवेदी शंकु (Colour sensitive cone) के त्रुटिपूर्ण हो जाने के कारण होता है। वर्णान्धता X क्रोमोसोम पर स्थित कुछ जीनों के उत्परिवर्तन (Mutation) के कारण उत्पन्न होती है।

चूँकि अन्य लिंग सहलग्न रोगों के समान इसका जीन भी X लिंग क्रोमोसोम पर स्थित होता है। अत: वर्णान्धता मुख्यतः पुरुषों को ही अधिक प्रभावित करती है। पुरुषों में केवल एक X क्रोमोसोम होता है। अत: वह अप्रभावी होने पर भी अभिव्यक्त हो जाता है। महिलाओं में चूँकि दो X क्रोमोसोम होते हैं। अत: रोग के लिए विषमयुग्मजी (Heterozygous) अवस्था में रोग के लक्षण उत्पन्न नहीं होते क्योंकि सामान्य अलील प्रभावी होता है। इसी कारण लगभग 8 प्रतिशत पुरुषों एवं 0.4% स्त्रियों में यह विकार पाया जाता है। एक वर्णान्ध पुरुष अपने नर शिशु (लड़के) में रोग का संचरण नहीं कर सकता। पुत्रों में यह रोग वाहक (carrier) अथवा रोगी स्त्री द्वारा ही आता है। किसी वाहक स्त्री के सामान्य पुरुष से विवाह होने पर उसके कुल पुत्रों में से वर्णान्ध पुत्र होने की सम्भावना 50% है।

पुत्रियाँ प्रायः वर्णान्ध नहीं होतीं जब तक कि माँ-वाहक व पिता वर्णान्ध न हो।

वंशागति निम्न प्रकार होती है-

कुल पुत्रों में से आधे 50% वर्णान्ध स्त्री के वर्णान्ध होने की स्थिति 50% पुत्र वर्णान्ध 50% सामान्य,पुत्रियाँ 50% वाहक व 50% वर्णान्ध वर्णान्धता दादा से वाहक पुत्रियों के माध्यम से नाती (Grandson) में पहुँचती है।

हीमोफीलिया की वंशागति–हीमोफीलिया एक रक्त विकार है। जिसमें रक्त में एक महत्त्वपूर्ण स्कन्दनकर्ता कारक (Clotting factor) की कमी होती है। अतः रक्त का स्कन्दन बहुत ही देर में अथवा होता ही नहीं है रोगी के शरीर में हुआ एक छोटा-सा घाव जानलेवा साबित हो सकता है।

यह एक लिंग सहलग्न अप्रभावी (Sex linked recessive) रोग है। जो नर शिशु में अप्रभावित वाहक (Unaffected carrier) महिलाओं से आता है। वाहक महिलाएँ हीमोफीलिया के लिए विषमयुग्मकी (Heterozyogus) होती हैं तथा इनमें सामान्य अलील की उपस्थिति में हीमोफीलिया की स्थिति नहीं बनती। स्त्रियों के हीमोफीलिया से ग्रस्त होने की सम्भावना बहुत ही कम होती है, क्योंकि इस स्थिति के लिए उसकी माँ का वाहक होना तथा पिता का हीमोफीलिया से ग्रस्त होना आवश्यक होगा। हीमोफीलिया ग्रस्त स्त्रियों की आयु अधिक नहीं होती। ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया के अनेक वंशज हीमोफीलिया से ग्रस्त थे तथा वह स्वयं इस रोग की वाहक थीं। हीमोफीलिया पर व्यापक अध्ययन हुआ है।

चूँकि वाहक पुत्री में एक सामान्य अलील है। अत: वह रोग से बची रहेगी। पुत्र में Y क्रोमोसोम X के समजात नहीं है। अतः वह केवल X की उपस्थिति से ही रोगी होगा।

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