बिरजू महाराज के पिताजी बाईस वर्षों से रामपुर के नवाब के नीकर थे। वं हनुमानजी से प्रार्थना करते थे कि मेरी नौकरी छूट जाए। नवाच ने एक दिन कहा- "तुम्हारा लड़का नहीं होगा, तो तुम भी नहीं रह सकते।" बिरजू महाराज के पिताजी विरजू को रामपुर के नवाब के दरबार में नहीं रखना चाहते थे। इस तरह, उनकी नौकरी का छूटना लगभग पक्का हो चुका था। वे बहुत खुश हुए। उन्होंने लोगों में मिठाइयाँ बाँटीं और हनुमानजी को प्रसाद चढ़ाया कि जान छूटी।