भारतीय मजदूर
भारतीय मजदूर का चित्र : भारतीय मजदूर निर्धनता एवं अभाव की जिन्दगी का जीता-जागता प्रतीक होता है। उसका जीवन अनेकों समस्याओं के बीच दयनीय स्थिति में व्यतीत होता है। जाड़ा, गर्मी एवं वर्षा सभी परिस्थितियों में वह कठोर परिश्रम द्वारा अपने कार्य में व्यस्त रहता है। वस्तुतः मजदूर का अत्यंत संघर्षमय जीवन होता है। न शरीर पर पर्याप्त वस्त्र, न पेट भरने के लिए पर्याप्त भोजन, एक मजदूर की जीवन-शैली यही है। भारतीय मजदूर की नियति दारूण व्यथा को सहन करना है।
भारतीय मजदूर की मजबूरी : भारतीय मजदूर का जीवन अनेकों मजबूरियों से घिरा रहता है। वह कभी चैन की साँस नहीं ले पाता है। दिन भर खेतों, कारखानों में, नहरों, बाँधों, सड़कों आदि में जहाँ भी उसे काम करने का अवसर मिलता है-अनवरत् कठोर परिश्रम करता रहता है। गर्मी की लू, जाड़े की हाड़ कपाँती ठंडक एवं घनघोर वर्षा में भी वह अपना कार्य करते रहने को अभिशप्त है। कहा जा सकता है कि मजदूर का जीवन मजबूर व्यक्ति का संघर्षशील जीवन है।
घोर परिश्रमी : मजदूर घोर परिश्रमी होता है। कभी सुख-चैन का जीवन उसे नसीब नहीं होता। प्रातःकाल होते ही वह अपने काम में लग जाता है। नाममात्र का जलपान करके ही वह धैर्यपूर्वक अपने कार्य में जुट जाता है। दोपहर में रूखी-सूखी, रोटियाँ, सत्तू अथवा कुछ अन्य भोजन कर बिना आराम किए काम में लग जाता है तथा अन्य मजदूरों के साथ देर शाम तक अपना कार्य करता रहता है, न दिन में, चैन, न रात में आराम।
अज्ञान और अशिक्षा : भारतीय मजदूर के साथ सबसे बड़ी कमी उसका अशिक्षित होना है। अनपढ़ या मामूली पढ़ा-लिखा-अकुशल मजदूर कोई रचनात्मक कार्य कर भी नहीं सकता है। केवल बताएं हुए काम को बैल की तरह कठोर श्रम करते हुए पूरा करता है। उसकी अशिक्षा तथा अज्ञान उसकी दुरवस्था का मूल कारण है।
उत्थान के उपाय : मजदूरों उत्थान के लिए समुचित शिक्षा तथा प्रशिक्षण की आवश्यकता है। तभी उनका जीवन स्तर सुधर सकता है और उन्हें उनके काम का उचित पारिश्रमिक मिल सकता है। यह संतोषजनक बात है कि भारत सरकार उन्हें शिक्षित करने एवं प्रशिक्षण देने का पर्याप्त प्रयास कर रही है। इस दिशा में भारतीय मजदूरों में भी काफी जागरूकता आयी है तथा शिक्षा के महत्व को वे समझने लगे हैं।