प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक दिंगत के गाँव का घर शीर्षक कविता से उन्द्रत है। इस कविता के रचयिता कवि ज्ञानेन्द्रपति है। इन पंक्तियों में गाँवों की पुरानी व्यवस्था तथा नैतिक मूल्यों का वर्तमान व्यवस्था द्वारा ह्रास उनकी चिंता का विषय है।
इन पंक्तियों में कवि ने एक और पुरानी ग्रामीण व्यवस्था में गाँवों के विवाद को निपटाने में पंच परमेश्वर तथा पंचायत की भूमिका का वर्णन किया है वहीं वर्तमान पंचायती राज व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार, अनैतिकता तथा अराजकता की ओर संकत किया है। कवि की ऐसी प्रतीति है कि पंच परमेश्वर का सौम्य रूप पंचायती राज की अव्यवस्था तथा अन्याय के अंधकार में लुप्त हो गया है। लालटेनों की जगह बिजली ने ले लिया है। अब गाँव में बिजली आ गयी है। परंतु विडंबना यह है कि बनी रहने की बजाय यह अधिकतर गई रहने वाली हो गयी है। तात्पर्य यह है कि बिजली थोड़ी देर के लिए आती है तथा अधिकांश समय गायब रहती है।