प्रदूषण
प्राकृतिक संपदाओं की निर्मम एवं अविवेकपूर्ण लूट के कारण आज सारा संसार प्रदूषण की समस्या से जूझ रहा है। अदूरदर्शिता और अज्ञानता के कारण मानव पेड़-पौधों की अंधाधुंध कटाई कर रहा है। भारत में प्रतिवर्ष स्विट्जरलैंड से तिगुने बड़े क्षेत्र का जंगल क्रूरतापूर्वक विनष्ट किया जा रहा है। विश्व से लगभग पच्चीस हजार वनस्पति की प्रजातियाँ समाप्त हो गई है। वनस्पति जगत के इस विनाश के मानवजाति को विनाश के कगार पर ला खड़ा किया है। प्रदूषण की समस्या समस्त मानव समाज के समक्ष चुनौती है। इसके साथ मानव समाज के जीवन-मरण का प्रश्न जुड़ा हुआ है। उद्योगीकरण प्रदूषण का मुख्य कारण हैं। इसके चलते जल, थल, वायुमंडल सब प्रदूषित होते रहते हैं। प्रदूषण के मुख्य रूप है-वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, रासायनिक प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण ।
प्रदूषण अंतरराष्ट्रीय समस्या है। इस समस्या के निदान के लिए संसार के वैज्ञानिकों को महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी। प्रकृति के लिए डब्ल्यू डब्ल्यू. एफ. (विश्वव्यापक कोष) ने 1986 में अपनी रजत जयंती समारोह (सिसली में) के अवसर पर दुनिया से अपील की थी कि हम अपने जीवन सहयोगी पेड़-पौधों को नष्ट होने से रोकें। आज डब्ल्यू डब्ल्यू. एफ. पौधा संरक्षण कार्यक्रम विश्वभर में सुचारु रूप से चल रहा है। इस कार्यक्रम के तहत विश्व के एक सौ तीस देशों में चार हजार परियोजनाएँ प्रारंभ की गई हैं। प्रोजेक्ट टाइगर नामक परियोजना को अपूर्व सफलता प्राप्त हुई है। वायु एवं जल प्रदूषण को रोकने के लिए वनों के कटाव पर रोक लगानी होगी तथा कटे हुए वनों को पुनः हरे-भरे वनों में परिवर्तित करना होगा। जल प्रदूषण से बचने के लिए यह आवश्यक है कि दूषित जल को जमीन के बहुत नीचे शोषित कराया जाए। वाहनों में साइलेंसरों का प्रबंध कर हम ध्वनि प्रदूषण से बच सकते हैं। लाउडस्पीकरों का उपयोग पूर्णतः प्रतिबंधित होना चाहिए। रासायनिक प्रदूषण से मुक्त रहने के लिए आवश्यक है कि कल-कारखाने बस्तियों से दूर लगाए जाएँ। शहरों और महानगरों में मल जल की निकासी का अच्छा प्रबंध होना चाहिए। प्रदूषण से पर्यावरण की रक्षा करना मानव अस्तित्व की रक्षा करना है।
पर्यावरण व्यापक शब्द है। इस शब्द से हमारे चारों तरफ के वातावरण का बोध होता है। हमारे चारों तरफ के वातावरण में मिट्टी, जल, वायुमंडल, जीव जंतु तथा वृक्ष शामिल हैं। ये सभी एक-दूसरे के पूरक तथा आश्रित हैं। एक का भी नष्ट होना या असंतुलित होना हमारे पर्यावरण को असंतुलित बना देता है। जिस प्रकार मनुष्य के जीवन में शरीर का स्थान है, उसी प्रकार विश्वरूपी मनुष्य का शरीर पर्यावरण है। और, जिस तरह शरीर को नीरोग एवं स्वस्थ एवं कल्याण के लिए पर्यावरण का प्रदूषणमुक्त होना आवश्यक है। अपनी सुख-सुविधा के लिए मनुष्य ने अपने पर्यावरण का आवश्यकता से अधिक दोहन किया है। फलतः, आज पर्यावरण का संतुलन बिगड़ गया है।