प्रत्येक अंडाशय संयोजी ऊतक के बना एक परत ट्यूनिका एल्बुजिनिया से आच्छादित रहता है । इस परत के नीचे जनन-एपिथीलियम का एक परत होता है । इसका कोशिका से अंडाणु विकसित होता है । अंडाशय के आंतरिक भाग तंतुओं एवं संयोजी ऊतक का बना होता है जिसे स्ट्रोमा (stroma) कहते हैं। जनन एपिथीलियम के कई कोशिकाएँ स्ट्रोमा में जाकर पुटकों (follicle) का निर्माण करता है। इससे एक कोशिका बड़ी होकर अंडकोशिका जमाती है एवं फिर ग्रेनुलोसा कोशिकाओं से घिरकर प्राथमिक पुटक का निर्माण करती है। पुटक कोशिकाएँ विभाजित होती हैं और दो स्तरों से अंडकोशिका को घेरकर द्वितीयक पटक बनाती है। अब यह स्ट्रोमा के ऊपरी भाग में आता है। इसमें एक क्षेत्र बनता है जिसे एंट्रम (antrum) कहते हैं। इसमें एक द्रव रहता है जिसे पुटिका द्रव कहते हैं ।
एंट्रम तथा पुटिका द्रव के कारण डिंबकोशिका एक ओर खिसक जाती है, लेकिन पुटक कोशिकाओं के साथ अपना संबंध बनाए रखती है। कोशिकाओं के इस समूह को डिस्कस प्रोलीजेरस कहते हैं। अंड (ovum) को घेरे एक अकोशिकीय परत रहती है जिसे जोना पेलुसिहा (zona pellucida) कहते हैं। इस परत के बाहर अरीय रूप से लंबी-लंबी पुटक कोशिकाएँ होती हैं। इसे कॉरोना कॉरोना रेडिएटा कहते हैं । परिपक्व पुटक को ग्राफी पुटक कहते हैं, जो अंडाशय की बाहरी सतह के निकट खिसक आता है।

Figure : मानव मादा के अंडाशय का अनुप्रस्थ काट
अंड-निस्सरण के बाद पुटक से एक पीले रंग की रचना बनती है। पुटक कोशिकाएँ पीतिका कोशिकाओं में परिवर्तित हो जाती है। इस प्रकार, अंडरहित ग्राफी पुटक, जमे रुधिर और पीतिका कोशिकाओं से निर्मित रचना कॉर्पस ल्यूटियम कहते हैं। यह एक अल्पकालिक अंतःस्रावी ग्रंथि का काम करता है और प्रोजेस्टेरॉल एवं ऐस्ट्रोजेन नामक हॉर्मोन स्रावित करता है ।