आइन-ए-अकबरी का महत्व-यद्यपि आइन-ए-अकबरी को मुगल बादशाह अकबर ने शासन की सुविधा के लिए विस्तृत सूचनाएँ जमा करने के लिए प्रायोजित किया था; फिर भी यह पुस्तक आधिकारिक दस्तावेजों की नकल मात्र नहीं है। इसकी पांडुलिपि को लेखक ने पाँच बार संशोधित किया था जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि इस पुस्तक का लेखक (अबुल फजल) इसकी प्रामाणिकता के प्रति बहुत सतर्क था। उदाहरण के लिए मौखिक प्रमाणों को तथ्य के रूप में पुस्तक में सम्मिलित करने से पहले अन्य स्रोतों से उनकी वास्तविकता की पुष्टि करने का प्रयास किया जाता था।
पुस्तक के आँकड़ों वाले समस्त खण्डों में सभी आँकड़े अंकों के साथ-साथ शब्दों में भी लिखे गए हैं ताकि बाद की प्रतियों में नकल की गलतियाँ होने की सम्भावना कम से कम हो जाए। आइन-ए-अकबरी की सीमाएँ-काफी सावधानी रखने के बावजूद कुछ इतिहासकार आइन-ए-अकबरी को पूर्णरूप से दोषरहित नहीं मानते हैं। आइन के प्रमुख दोष /त्रुटियाँ या सीमाएँ निम्नलिखित हैं
(i) आइन-ए-अकबरी में जोड़ करने में कई गलतियाँ पायी गई हैं। ऐसा माना जाता है कि या तो ये अंकगणित की छोटी-मोटी चूक हैं या फिर नकल उतारने के दौरान अबुल फजल के सहयोगियों द्वारा की गयी भूलें हैं। फिर भी ये गलतियाँ मामूली हैं तथा व्यापक स्तर पर आँकड़ों की सच्चाई को कम नहीं करती हैं।
(ii) आइन-ए-अकबरी के संख्यात्मक आँकड़ों में विषमताएँ पायी जाती हैं क्योंकि सभी सूबों के आँकड़े समान रूप से एकत्रित नहीं किए गए। जहाँ कई सूबों के लिए जमींदारों की जाति के अनुसार विस्तृत सूचनाएँ एकत्रित की गयीं; वहीं बंगाल और उड़ीसा के लिए ऐसी सूचनाएँ नहीं मिलती हैं।
(iii) आइन-ए-अकबरी में जहाँ सूबों के लिए राजकोषीय आँकड़े बड़े विस्तार से दिए गए हैं, वहीं उन्हीं प्रदेशों से सम्बन्धित मूल्यों एवं मजदूरी जैसे महत्वपूर्ण आँकड़े इतने विस्तार से नहीं दिए गए हैं।
(iv) मूल्यों और मजदूरी की दरों की जो विस्तृत सूची आइन-ए-अकबरी में दी गई है; वह मुगल साम्राज्य की राजधानी आगरा अथवा उसके आसपास के क्षेत्रों से ली गई है। स्पष्ट है कि देश के शेष भागों के लिए इन आँकड़ों की प्रासंगिकता दिखाई नहीं देती है। संक्षेप में, कुछ त्रुटियों के बावजूद आइन-ए-अकबरी अपने समय का एक असाधारण एवं अनूठा दस्तावेज है।