मुगलों के केन्द्रीय प्रशासन का मुखिया स्वयं बादशाह होता था। साम्राज्य की समस्त शक्तियाँ उसी के हाथों में केन्द्रित होती थीं। शासन कार्यों में सहयोग व सलाह प्रदान करने के लिए एक मंत्रिपरिषद होती थी; जिसमें मीरबख्शी, दीवान-ए-आला (वित्तमंत्री), सद्र-उस-सुदुर (अनुदान मंत्री) आदि महत्वपूर्ण पद होते थे। बादशाह की मंत्रिपरिषद में मीरबख्शी उच्चतम वेतनदाता था जो खुले दरबार में बादशाह के दायीं ओर खड़ा रहकर नियुक्ति तथा पदोन्नति के समस्त उम्मीदवारों को प्रस्तुत करता था। उसका कार्यालय उसकी मुहर एवं हस्ताक्षर के साथ-साथ बादशाह की मुहर व हस्ताक्षर वाले आदेश भी जारी करता था। दीवान-ए-आला (वित्तमंत्री) आय-व्यय का विवरण रखता था। सद्र-उस सुदुर अर्थात् मदद-ए-माश अथवा अनुदान का मंत्री एवं स्थानीय न्यायाधीशों अथवा काजियों की नियुक्ति का प्रभारी था। ये तीनों मंत्री कभी-कभी एकसाथ एक सलाहकार संस्था के रूप में भी कार्य करते थे; परन्तु ये एक-दूसरे से स्वतन्त्र होते थे।