राजधानी नगर मुगल साम्राज्य का केन्द्रीय स्थल होता था। दरबार का आयोजन इसी केन्द्रीय स्थल राजधानी के नगर में किया जाता था। मुगलों की राजधानियाँ सोलहवीं और सत्रहवीं शताब्दी में तीव्रता से एक नगर से दूसरे नगर में स्थानान्तरित होने लगी। बाबर जिसने कि मुगल साम्राज्य की स्थापना की थी, ने इब्राहीम लोदी के द्वारा स्थापित राजधानी आगरा पर अधिकार कर लिया था तथा अपने शासनकाल के चार वर्षों में उसने अपने दरबार भिन्न-भिन्न स्थानों पर लगाए। 1560 ई. में अकबर ने आगरा में किले का निर्माण करवाया; जिसे आस-पास की खदानों से लाए गए लाल बलुआ पत्थर से निर्मित किया गया था। फतेहपुर सीकरी-अकबर ने 1570 ई के दशक में अपनी नई राजधानी फतेहपुर सीकरी में बनाने का निर्णय लिया जिसका कारण सम्भवतः यह माना जाता है कि अकबर प्रसिद्ध सूफी संत शेख मुइनुद्दीन चिश्ती का मुरीद था; जिनकी दरगाह अजमेर में है। फतेहपुर सीकरी अजमेर जाने वाली सीधी सड़क पर स्थित था। शेख मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह उस समय तक सभी धर्मों के प्रमुख तीर्थस्थल के रूप में विकसित हो चुकी थी।
अकबर ने फतेहपुर सीकरी में जामा मस्जिद के निकट ही शेख सलीम चिश्ती के लिए संगमरमर के मकबरे का निर्माण भी करवाया। अकबर ने फतेहपुर सीकरी में ही एक विशाल मेहराबी प्रवेश द्वार, जिसे बुलन्द दरवाजा कहा जाता है, का निर्माण भी करवाया। बुलन्द दरवाजा यहाँ आने वाले लोगों को गुजरात में मुगल विजय की याद दिलाता है। लाहौर-अकबर ने 1585 ई. में अपनी राजधानी को लाहौर स्थानांतरित कर दिया जिसका कारण उत्तरी-पश्चिमी सीमा पर प्रभावशाली नियन्त्रण स्थापित करना था। लाहौर में राजधानी को स्थानान्तरित कर अकबर ने उत्तरी पश्चिमी सीमा पर तेरह वर्षों तक अपना नियन्त्रण बनाए रखा। शाहजहाँनाबाद (दिल्ली) में राजधानी की स्थापना शाहजहाँ को वास्तुकला तथा भवन निर्माण में बहुत अधिक रुचि थी। शाहजहाँ के पास भवन निर्माण के लिए व्यापक धनराशि का प्रबन्ध था।
इमारत निर्माण-कार्य, राजवंशीय सत्ता, धन और प्रतिष्ठा का प्रतीक बन गया था। शाहजहाँ ने दिल्ली के प्राचीन रिहायशी नगर में शाहजहाँनाबाद के नाम से नई राजधानी की स्थापना की। 1648 ई. में दरबार, सेना व राजसी खानदान आगरा से दिल्ली में स्थानान्तरित हो गए। शाहजहाँनाबाद एक नई शाही आबादी के रूप में विकसित हुआ। शाहजहाँ की पुत्री जहाँआरा ने इस नई राजधानी की कई वास्तुकलात्मक संरचनाओं की रूपरेखा निर्मित की; जिनमें चाँदनी चौक और कारवाँ सराय नामक दोमंजिली इमारत प्रमुख थीं। लाल किला, जामा मस्जिद, चाँदनी चौक के बाजार की वृक्ष वीथिका और अभिजात वर्ग के बड़े-बड़े घरों से युक्त शाहजहाँ का यह नया शहर विशाल एवं भव्य राजतन्त्र की औपचारिक कल्पना को व्यक्त करता था।