पृथ्वी के भू-चुम्बकत्व के प्रमाण-
• स्वतन्त्रतापूर्वक लटकाये गये चुम्बक का सदैव उत्तर-दक्षिण दिशा में ठहरना,
• पृथ्वी में गाड़ने पर लोहे के टुकड़े को कुछ समय बाद चुम्बक बनना तथा
• उदासीन बिन्दुओं का मिलना।
चुम्बकत्व के मौलिक तत्त्व- पृथ्वी भी एक चुम्बक की भॉति व्यवहार करती है। पृथ्वी के इस गुण को भू-चुम्बकत्व कहते हैं। किसी स्थान पर पृथ्वी के भू-चुम्बकत्व का अध्ययन करने के लिए जिन राशियों की आवश्यकता होती है, वे भू-चुम्बकत्व के अवयव कहलाती हैं।
भू-चुम्बकत्व के निम्नलिखित तीन अवयव हैं-
1. दिक्पात कोण (Angle of Declination)- किसी स्थान पर अपने गुरुत्व-केन्द्र से स्वतन्त्रतापूर्वक लटकी चुम्बकीय सूई के अक्ष से गुजरने वाले ऊर्ध्वाधर तल को ‘चुम्बकीय याम्योत्तर’ कहते हैं। इसी प्रकार किसी स्थान पर पृथ्वी के भौगोलिक उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुवों को मिलाने वाली रेखा में से गुजरने वाले ऊर्ध्वाधर तल को ‘भौगोलिक याम्योत्तर’ कहते हैं। पृथ्वी तल के किसी स्थान पर चुम्बकीय याम्योत्तर एवं भौगोलिक याम्योत्तर के बीच बने न्यून कोण को दिक्पात कोण’ कहते हैं।
2. नति कोण अथवा नमन कोण (Angle of Dip)- यदि किसी चुम्बकीय सूई को उसके गुरुत्व केन्द्र से स्वतन्त्रतापूर्वक इस प्रकार लटकाया जाए कि सूई ऊर्ध्वाधर तल में घूम सके तो चुम्बकीय याम्योत्तर में स्थिर होने पर सूई क्षैतिज दिशा से कुछ झुक जाती है। इस अवस्था में सूई का चुम्बकीय अक्ष, चुम्बकीय याम्योत्तर में क्षैतिज दिशा के साथ जो कोण बनाता है, उसे ‘नति कोण’ कहते हैं। चूँकि सूई का चुम्बकीय अक्ष पृथ्वी के H चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा प्रदर्शित करता है; अत: नति कोण वह नति कोण कोण है, जो चुम्बकीय याम्योत्तर में पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र Be की दिशा तथा क्षैतिज दिशा के बीच बनता है। नति कोण का मान पृथ्वी की चुम्बकीय निरक्ष पर 0° तथा पृथ्वी के चित्र चुम्बकीय ध्रुवों पर 90° होता है। उत्तरी गोलार्द्ध में नति सूई का उत्तरी सिरा और दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिणी सिरा नीचे की ओर झुकता है।

3. पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र का क्षैतिज घटक (Horizontal Component of Earth’s Magnetic Field)- किसी स्थान पर चुम्बकीय याम्योत्तर में कार्य करने वाले पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र Be का जो घटक क्षैतिज दिशा में कार्य करता है, उसे पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र का क्षैतिज घटक (H) कहते हैं। दिक्पात कोण. (α), नति कोण (θ) तथा चुम्बकीय क्षेत्र के क्षैतिज घटक (H) में भौगोलिक उत्तर सम्बन्ध-चुम्बकीय निरक्ष को छोड़कर, हर स्थान पर चुम्बकीय सूई क्षैतिज से कुछ झुककर रुकती है। अतः चुम्बकीय उत्तर + किसी स्थान पर चुम्बकीय याम्योत्तर में कार्य करने वाले। चुम्बकीय क्षेत्र B को, क्षैतिज तथा ऊर्ध्वाधर घटकों में योम्योत्तर वियोजित किया जा सकता है।
ये घटक क्रमशः H तथा V से प्रकट किये जाते हैं। याम्योत्तर इन दोनों में पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र को क्षैतिज घटक H अधिक महत्त्वपूर्ण है। इसीलिए इसको भू-चुम्बकत्व के मौलिक तत्त्वों में सम्मिलित क्रिया गया है।

NS एक स्वतन्त्रतापूर्वक लटकी चुम्बकीय सूई है। इसके अक्ष में से होकर गुजरने वाला ऊर्ध्वाधर तल OPQR चुम्बकीय याम्योत्तर है। तल OLMR वहाँ पर भौगोलिक याम्योत्तर है। इन तलों के बीच का कोण θ दिक्पात कोण है, जबकि सूई का अक्ष OQ तथा क्षैतिज दिशा OP के बीच का कोण ‘θ’ नति कोण है।
चुम्बकीय सूई का अक्ष OQ पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र Be की दिशा को प्रदर्शित करता है। चुम्बकीय क्षेत्र Be को क्षैतिज तथा ऊध्र्वाधर घटकों (H वे V) में वियोजित करने पर पृथ्वी के क्षेत्र का क्षैतिज घटक H = Be cos θ पृथ्वी के क्षेत्र का ऊर्ध्वाधर घटक V = Be sin θ
अत: समी० (1) व (2) का वर्ग करके जोड़ने पर,

यदि किसी स्थान पर α और θ ज्ञात हों तो पृथ्वी के क्षेत्र Be की दिशा पूर्णतया निर्धारित की जा सकती है तथा यदि H और θ ज्ञात हों तो Be का परिमाण ज्ञात किया जा सकता है। इस प्रकार α, θ तथा H किसी स्थान पर पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र का पूर्ण ज्ञान कराते हैं। इसी कारण इन्हें भू-चुम्बकीय अवयव कहते हैं। यही इनका महत्त्व है।