होली के दिन देश के दीवाने अपनी होली कुछ अलग ढंग से ही मनाना चाह रहे थे। इस दिन वे सवेरे से ही जुलूस निकालकर जलाने के लिए विदेशी वस्त्रों का संग्रह करते फिर रहे थे। वे दल बनाकर घूमते हुए भारत जननि तेरी जय, तेरी जय हो’ का गायन करते हुए लोगों को उत्साहित कर रहे थे और लोग अपने कुरते, कमीज, टोपी, धोती आदि दे रहे थे। दुलारी ने भी देश के दीवानों की पुकार सुनकर खिड़की खोली और मैंनचेस्टर तथा लंकाशायर के मिलों की बनी साड़ियों का नया बंडल फेंककर अपना योगदान दिया।