हर परंपरा अपने काल, देश और परिस्थिति के अनुसार प्रासंगिक रहती है, परंतु बदलते समय के साथ उनमें से कुछ अपनी उपयोगिता एवं प्रासंगिकता खो बैठती है। इन्हीं में से एक थी पुरुष और स्त्रियों की शिक्षा में भेदभाव करने की परंपरा। इसके कारण स्त्री-पुरुष की स्थिति में असमानता उत्पन्न होने के अलावा बढ़ती जा रही थी। अतः इसे त्यागकर ऐसी परंपरा अपनाने की आवश्यकता थी जो दोनों में समानता पैदा करे।
शिक्षा वह साधन है जिसका सहारा पाकर स्त्रियाँ पुरुषों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल सकती हैं और लगभग हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रही हैं। अतः लड़का-लड़की में भेदभाव न करने उनके पालन-पोषण, शिक्षा-दीक्षा तथा अवसरों में समानता देने की स्वस्थ परंपरा अपनानी चाहिए तथा स्त्री-पुरुष में समानता बढ़े।