‘ऐसी बाँणी बोलिये’ के माध्यम से कबीर मनुष्य को अपने मन का अहंकार या घमंड छोड़कर मधुर वाणी में विनम्रता भरी वाणी बोलने की सीख दे रहे हैं। इसका कारण यह है कि अपने मन का अहंकार त्यागने से हमारे शरीर को शांति और शीतलता की अनुभूति होगी तथा मधुर वाणी सुनने वालों को सुखानुभूति होती है।