(क) 1. मरुस्थलीय पादपों के अनुकूलन इस प्रकार हैं –
1. इनकी जड़ें बहुत लम्बी, शाखित, मोटी एवं मिट्टी के नीचे अधिक गहराई तक जाती हैं।
2. इनके तने जल-संचय करने के लिए मांसल और मोटे होते हैं।
3. रन्ध्र स्टोमैटल गुहा में धंसे रहते हैं।
4. पत्तियाँ छोटी, शल्कपत्र या काँटों के रूप में परिवर्तित हो जाती हैं।
5. तना क्यूटिकिल युक्त तथा घने रोम से भरा होता है।
2. मरुस्थलीय प्राणियों के अनुकूलन इस प्रकार हैं –
1. मरुस्थल के छोटे जीव, जैसे- चूहा, साँप, केकड़ा दिन के समय बालू में बनाई गई सुरंग में रहते हैं तथा रात को बिल से बाहर निकलते हैं।
2. कुछ मरुस्थलीय जन्तु अपने शरीर के मेटाबोलिज्म से उत्पन्न जल का उपयोग करते हैं। उत्तरी अमेरिका के मरुस्थल में पाया जाने वाला कंगारू चूहा जल की आवश्यकता की पूर्ति अपनी आन्तरिक वसा के ऑक्सीकरण से करता है।
3. जन्तु प्रायः सूखे मल का त्याग करता है।
4. फ्रीनोसोमा तथा मेलोच होरिडस में काँटेदार त्वचा पाई जाती है।
(ख) जल की कमी के प्रति पादपों में अनुकूलन- ये मरुस्थलीय पादप कहलाते हैं। अत: इनका अनुकूलन मरुस्थलीय पादपों के समान होगा।
(ग) प्राणियों में व्यावहारिक अनुकूलन इस प्रकार हैं –
1. शीत निष्क्रियता,
2. ग्रीष्म निष्क्रियता,
3. सामयिक सक्रियता,
4. प्रवास आदि।
(घ) पादपों के लिए प्रकाश का महत्त्व इस प्रकार है –
1. ऊर्जा का स्रोत,
2. दीप्तिकालिक आवश्यकता,
3. वाष्पोत्सर्जन,
4. पुष्पन,
5. पादप गति,
6. पिग्मेंटेशन,
7. वृद्धि
8. कंद निर्माण आदि।
(ङ) 1. तापमान में कमी का प्रभाव तथा प्राणियों का अनुकूलन इस प्रकार है –
1. शीत निष्क्रियता,
2. सामयिक सक्रियता,
3. प्रवास आदि।
2. जल की कमी का प्रभाव तथा प्राणियों का अनुकूलन इस प्रकार है –
1. सूखे मल का त्याग करना।
2. अपने शरीर के मेटाबोलिज्म से उत्पन्न जल का उपयोग करना।
3. सूखे वातावरण को सहने की क्षमता।
4. उत्तरी अमेरिका के मरुस्थल में पाया जाने वाला कंगारू चूहा जल की आवश्यकता की पूर्ति अपने आन्तरिक वसा के ऑक्सीकरण से करता है।