परभक्षी (शिकारी) तथा भक्ष्य (शिकार)
किसी पारिस्थितिक तन्त्र (ecosystem) के जैवीय तथा अजैवीय घटकों (biotic and abiotic components) के आपसी सम्बन्ध, चक्रण आदि पर ही उस पारितन्त्र के सन्तुलन का अस्तित्व है। जैवीय घटकों के आपसी सम्बन्ध, ऊर्जा तथा पोषक पदार्थों के प्रवाह को सुनिश्चित करते हैं। जैवीय घटकों में तीन प्रकार के जीव प्रमुख हैं-
उत्पादक (producers), उपभोक्ता (consumers) तथा अपघटक (decomposers)। उपभोक्ता विभिन्न श्रेणियों (orders) के यथा शाकाहारी (herbivores), मांसाहारी (carnivores) या सर्वाहारी (Omnivores) होते हैं। इनमें भी प्रथम श्रेणी के उपभोक्ता सदैव शाकाहारी होते हैं और अपने पोषण के लिए उत्पादकों (producers) पर निर्भर करते हैं। . शाकाहारी जन्तु अगली श्रेणी के उपभोक्ताओं के लिए खाद्य पदार्थों को अपने अन्दर संचित करते हैं।
चूंकि ये जीव प्राय: जन्तु (animals) ही होते हैं अतः द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ताओं (consumers of second order) को तो इनको किसी न किसी प्रकार पकड़कर अथवा शिकार करके ही अपना खाद्य बनाना होगा। स्पष्ट है यह मांसाहारी (carnivore) जो अपने शिकार या भक्ष्य (prey) को मार कर अपना भोजन बनाता है शिकारी या परभक्षी (predator) कहलाता है।
परभक्षी तथा भक्ष्य के मध्य अन्तर्सम्बन्ध
पारितन्त्र में परभक्षी तथा भक्ष्य के सम्बन्ध निश्चित होते हैं तथा यह परस्पर दोनों की जनन शक्ति, भक्षण बारम्बारता, दोनों के आकार-परिमाप तथा रुचियों पर निर्भर करते हैं। परभक्षी एकाहारी(monophagous), अल्पभक्षी (oligophagous) अथवा विविध भक्षी (polyphagous) हो सकते हैं। कुछ भी हो परभक्षी भक्ष्य की जनसंख्या को क्रम से खाकर कम करने का अनायास प्रयास करता रहता है; उदाहरण के लिए सर्यों की उपस्थिति में चूहों की संख्या बहुत कम हो जाती है।
इसी प्रकार, एक घास के मैदान के पारितन्त्र में मेढकों की संख्या सर्यों द्वारा नियन्त्रित रहती है। यहाँ यह भी विशिष्ट है कि एक पारितन्त्र में भक्ष्य तथा परभक्षी की संख्या सन्तुलित रहती है। यह सन्तुलन, भक्ष्य को कितने प्रकार के परभक्षी अपना शिकार बनाते हैं तथा कितने अन्तराल के बाद कोई परभक्षी भक्ष्य का शिकार करता है, इन दोनों बातों के अतिरिक्त सामान्य परिस्थितियों में भक्ष्य उस पारितन्त्र में अपनी जनसंख्या को कितनी शीघ्रता से बढ़ा सकते हैं, पर निर्भर करता है।
एक उदाहरण से यह बात स्पष्ट हो सकती है-किसी जैव समुदाय में एक एकाहारी (monophagous) परभक्षी अर्थात् एक ही भक्ष्य पर निर्भर परभक्षी के लिए भक्ष्य काफी संख्या में उपलब्ध हैं। परभक्षी एक के बाद एक अपने भक्ष्यों का भक्षण करता जाता है; भक्ष्यों की संख्या स्पष्टतः कम होती जाती है, अब परभक्षी भूखे मरेंगे क्योंकि और तो कुछ वे खायेंगे ही नहीं, कुछ अपने भक्ष्य की खोज में अपने जैव समुदाय को ही छोड़ जायेंगे। इधर परभक्षियों की संख्या कम हुई तो भक्ष्यों की संख्या वृद्धि प्रोत्साहित होगी।
इनकी संख्या बढ़ने से परभक्षियों की संख्या वृद्धि का वातावरण तैयार करेगा। इस प्रकार भक्ष्य व परभक्षियों का संख्या घनत्व निश्चित रह सकता है। यहाँ यह आवश्यक रूप से निहित है कि प्रायः परभक्षी उच्चतम परभक्षी को छोड़कर भी तो किसी अन्य का भक्ष्य है।