लेखक जब भी खेलकर घर लौटता तो गुस्साए भाई साहब उससे पहला सवाल यही करते, “कहाँ थे”? हर बार इसी प्रकार के प्रश्न का उत्तर लेखक भी चुप रहकर दिया था। वह अपने द्वारा बाहर खेलने की बात कह नहीं पाता। लेखक की यह चुप्पी कहती थी कि उसे अपना अपराध स्वीकार है। ऐसे में भाई साहब स्नेह और रोष भरे शब्दों में उसका स्वागत करते।