हरिहर काका का भरा-पूरा परिवार है। उनके चार भाई हैं। सबकी शादी हो चुकी है। हरिहर काका के अलावा सबके बाल बच्चे हैं। बड़े और छोटे भाई के लड़के काफ़ी सयाने हो गए हैं। दो की शादियाँ हो गई हैं। उनमें से एक पढ़-लिखकर शहर के किसी दफ्तर में क्लर्की करने लगा है, लेकिन हरिहर काका की अपनी देह से कोई औलाद नहीं। औलाद के लिए उन्होंने दो शादियाँ कीं, लेकिन बिना बच्चा जने उनकी दोनों पत्नियाँ स्वर्ग सिधार गईं।