‘हरिहर काका’ नामक पाठ में लेखक ने ठाकुरबारी की स्थापना एवं उसके विशाल होते कलेवर के बारे में बताया है कि पहले जब गाँव पूरी तरह बसा नहीं था तभी कहीं से एक संत आकर इस स्थान पर झोंपड़ी बना रहने लगे थे। वह सुबहशाम यहाँ ठाकुर जी की पूजा करते थे। लोगों से माँगकर खा लेते थे और पूजा-पाठ की भावना जाग्रत करते थे। बाद में लोगों ने चंदा करके यहाँ ठाकुर जी का एक छोटा-सा मंदिर बनवा दिया। फिर जैसे-जैसे गाँव बसता गया और आबादी बढ़ती गई, मंदिर के कलेवर में भी विस्तार होता गया। लोग ठाकुर जी को मनौती मनाते कि पुत्र हो, मुकदमे में विजय हो, लड़की की शादी अच्छे घर में तय हो, लड़के को नौकरी मिल जाए। फिर इसमें जिनको सफलता मिलती, वह खुशी में ठाकुर जी पर रुपये, जेवर, अनाज चढ़ाते। अधिक खुशी होती तो ठाकुर जी के नाम अपने खेत का एक छोटा-सा टुकड़ा लिख देते। यह परंपरा आज तक जारी है। इससे ठाकुरबारी का विकास हज़ार गुना अधिक हो गया।