यूँ तो ठाकुरबारी में सदा ही भजन-कीर्तन होता रहता है, पर बाढ़ या सूखा जैसी आपदा की स्थिति में वहाँ तंबू लग जाता है और अखंडकीर्तन शुरू हो जाता है। इसके अलावा गाँव में पर्व-त्योहार की शुरुआत ठाकुरबारी से ही होती है। होली में सबसे पहले गुलाल ठाकुरजी को ही चढ़ाया जाता है। दीवाली का पहला दीप ठाकुरबारी में ही जलता है। जन्म, शादी और जनेऊ के अवसर पर अन्न-वस्त्र की पहली भेट ठाकुर जी के नाम की जाती है। ठाकुरबारी के ब्राह्मण-साधु व्रत-कथाओं के दिन घर-घर घूमकर कथावाचन करते हैं। लोगों के खलिहान में जब फ़सल की मड़ाई होकर अनाज की ढेरी’ तैयार हो जाती है, तब ठाकुर जी के नाम का एक भाग’ निकालकर ही लोग अनाज अपने घर ले जाते हैं।