ठाकुरबारी के महंत और अन्य साधु-संत जब काका का अपहरण कर ठाकुरबारी ले आए और कुछ सादे तथा कुछ लिखे कागजों पर जबरन काका के अँगूठे का निशान लिया तब काका को संतों के उस व्यवहार का पता चला जो मुँह में राम बगल में छुरी वाली कहावत चरितार्थ करता है। उन्होंने आदर का पात्र बने महंत के बारे में सपने में भी नहीं सोचा था कि वे इस रूप में भी आएँगे। जिस महंत को वह आदरणीय एवं श्रद्धेय समझते थे, वह महंत अब उन्हें घृणित, दुराचारी और पापी नज़र आने लगा था। अब वह उस महंत की सूरत भी देखना नहीं चाहते थे। अब अपने भाइयों का परिवार मत की तुलना में उन्हें ज्यादा पवित्र, नेक और अच्छा लगने लगा। साधु-संत, जो मोह माया से दूर एवं परोपकारी प्रवृत्ति के समझे जाते हैं उनके द्वारा ऐसा व्यवहार हर दृष्टि से अनुचित था।