मास्टर प्रीतमचंद बच्चों को चौथी कक्षा में फ़ारसी पढ़ाते थे। बच्चों को फ़ारसी अंग्रेज़ी से भी कठिन लगती थी। एक सप्ताह बाद ही प्रीतमचंद ने बच्चों को शब्द रूप याद करके आने और उसे जबानी सुनाने को कहा पर कठिन होने के कारण कोई भी लड़का न सुना सका। यह देख प्रीतमचंद को गुस्सा आया और उन्होंने बच्चों को मुरगा बना दिया। उनके द्वारा लड़कों को। मुरगा बनाने का ढंग बड़ा ही कष्टदायी होता था। उनके द्वारा दिया गया यह शारीरिक दंड बच्चे आजीवन नहीं भूल सके।