‘टोपी शुक्ला’ पाठ से पता चलता है कि टोपी को अपने मित्र इफ्फ़न, उसकी दादी और घर की नौकरानी सीता से अपनापन मिलता है। टोपी और इफ्फ़न सहपाठी हैं जो सम-वयस्क हैं और इतने निकट आ जाते हैं कि उन्हें अपनापन मिलने लगता है। इसी प्रकार इफ्फ़न की दादी और सीता ही इफ़्फ़न के दुख को समझती हैं और अपनत्वपूर्ण व्यवहार करती हैं। हाँ, आज के समय में भी ऐसा अपनेपन की प्राप्ति संभव है क्योंकि अपनेपन’ की राह में जाति, धर्म और उम्र आड़े नहीं आ सकते हैं। यह दो लोगों के सोच-विचार और व्यवहार पर निर्भर करता है।