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p-n सन्धि डायोड का उपयोग करके अर्द्धतरंग दिष्टकारी का परिपथ चित्र खींचिए तथा इसकी कार्यविधि समझाइए।

या 

p-n सन्धि का उपयोग करके अर्द्धतरंग दिष्टकारी का परिपथ चित्र खींचिए। निवेशी तथा निर्गत वोल्टताओं के तरंगरूप दिखाइए। क्या निर्गत वोल्टता शुद्ध दिष्ट वोल्टता होती है?

या 

p – n सन्धि डायोड को अर्द्धतरंग दिष्टकारी के रूप में कैसे प्रयोग में लाया जाता है? सरल परिपथ आरेख बनाकर कार्यविधि समझाइए। निवेशी तथा निर्गत वोल्टताओं के तरंग-रूप दिखाइए।

या 

p-n सन्धि डायोड क्या होता है? परिपथ आरेख खींचकर p-n सन्धि डायोड का अर्द्ध तरंग दिष्टकारी के रूप में कार्यविधि समझाइए। निवेशी तथा निर्गत वोल्टताओं के तरंग रूपों को दर्शाइए।

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p-n सन्धि डायोड: 

“जब एक p प्रकार के अर्द्धचालक क्रिस्टल को किसी विशेष विधि द्वारा 71-प्रकार के अर्द्धचालक क्रिस्टल के साथ जोड़ दिया जाता है, तो जिस स्थान पर क्रिस्टल एक-दूसरे से जुड़ते हैं, वह सन्धि कहलाती है। इस संयोजन के वैद्युत लक्षण डायोड वाल्व की भाँति होते हैं, अत: इस संयोजन को pen सन्धि डायोड कहते हैं। 

p-n सन्धि डायोड एक अर्द्धतरंग दिष्टकारी (Half wave rectifier) के रूप में: 

p-n सन्धि डायोड का अर्द्धतरंग दिष्टकारी परिपथ चित्र (a) में तथा निवेशी (input) एवं निर्गत (output) तरंग रूपों को चित्र (b) में प्रदर्शित किया गया है।

इसमें जिस प्रत्यावर्ती वोल्टता को दिष्टीकृत करना सन्धि डायोड होता है, उसे एक ट्रांसफॉर्मर की प्राथमिक कुण्डली के सिरों के बीच जोड़ देते हैं। ट्रांसफॉर्मर की द्वितीयक कुण्डली का एक सिरा सन्धि डायोड के p-प्रकार के निवेशी निर्गत क्रिस्टल अर्थात् p-क्षेत्र से तथा दूसरा सिरा लोड वोल्टता वोल्टता प्रतिरोध RL के द्वारा सन्धि डायोड के n-प्रकार के क्रिस्टल अर्थात् n-क्षेत्र से जोड़ दिया जाता है। दिष्ट निर्गत वोल्टेज लोड RL के सिरों के बीच प्राप्त किया जाता है।

कार्यविधि (Working): 

जब निवेशी AC वोल्टेज के आधे चक्र में ट्रांसफॉर्मर की द्वितीयंक कुण्डली का निवेशी प्रत्यावर्ती सिगनल A सिरा B सिरे के सापेक्ष धनात्मक होता है, तो सन्धि डायोड अग्र-अभिनत (forward biased) होता है। इसके परिणामस्वरूप लोड प्रतिरोध RL .में प्राप्त दिष्टकृत निर्गत सिगनल निर्गत वोल्टता में केवल धन भाग ही प्राप्त होते हैं। इस  स्थिति में लोड़ प्रतिरोध में धारा C से D की ओर प्रवाहित होती है। निवेशी AC वोल्टेज के अगले आधे चक्र में ट्रांसफॉर्मर की द्वितीयक कुण्डली का A सिरा B सिरे के सापेक्ष ऋणात्मक होता है, तो सन्धि डायोड उत्क्रम-अभिनत (reverse biased) हो जाता है। इस दशा में प्रतिरोध RL में धारा शून्य रहती है। इस प्रकार मुख्यतः धारा निवेशी वोल्टता के पहले आधे चक्र में ही प्रवाहित होती है तथा शेष आधे चक्र कट जाते हैं। इस प्रकार उच्चावचित (fluctuating) दिष्टधारा लोड प्रतिरोध के आर-पार (across) प्राप्त होती रहती है। चित्र (b) के निचले भाग में धारा को तरंग रूप दर्शाया गया है जिसमें थोड़ी-थोड़ी दूर पर (अर्थात् थोड़ी-थोड़ी देर में) धारा के एकदिशीय स्पन्द (pulses) दिखाई देते हैं। इस प्रकारे सन्धि डायोड एक अर्द्धतरंग दिष्टकारी की भाँति कार्य करता है। निर्गत वोल्टता शुद्ध दिष्ट वोल्टता नहीं होती है बल्कि एक दिशीय स्पन्दों के रूप में होती है।

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