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ट्रांजिस्टर क्या होता है? आवश्यक चित्र बनाकर p-n-p ट्रांजिस्टर की रचना तथा कार्यविधि समझाइए। या p- n-p ट्रांजिस्टर में विद्युत चालन की क्रिया को समझाइए। इसमें आधार पतला क्यों रखा जाता है ?

या 

उभयनिष्ठ उत्सर्जक p-n-p ट्रांजिस्टर प्रवर्धक की कार्यविधि परिपथ आरेख खींचकर समझाइए।

या 

p-n-p ट्रांजिस्टर की संरचना का वर्णन कीजिए तथा परिपथ चित्र देते हुए समझाइए कि यह उभयनिष्ठ उत्सर्जक विन्यास में वोल्टता प्रवर्धक का कार्य कैसे करता है? 

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ट्रांजिस्टर: दो p-n सन्धियों को सम्पर्क में रखकर बनायी गयी वह युक्ति जो एक ट्रायोड वाल्व की भाँति व्यवहार करती है, ट्रांजिस्टर कहलाती है। 

p-n-p ट्रांजिस्टर रचना: 

इसमें n-टाइप अर्द्धचालक की एक पतली परत दो p-टाइप अर्द्धचालकों के छोटे-छोटे क्रिस्टलों के बीच में दबाकर रखी होती है [चित्र (a)]। इस पतली परत को ‘आधार’ (base) कहते हैं तथा इसके बायें तथा दायें वाले क्रिस्टलों को क्रमशः ‘उत्सर्जक’ (emitter) और ‘संग्राहक (collector) कहते हैं। आधार के सापेक्ष उत्सर्जक को धन-विभव पर तथा संग्राहक को ऋण-विभव पर रखा जाता है। स्पष्ट है कि उत्सर्जक-आधार (p-n) सन्धि अग्र-अभिनत अर्थात् अल्प प्रतिरोध वाली सन्धि है, जबकि आधार-संग्राहक (n-p) सन्धि उत्क्रम-अभिनत अर्थात् उच्च प्रतिरोध वाली सन्धि है। चित्र (b) में ट्रांजिस्टर का प्रतीक प्रदर्शित है। इसमें बाण की दिशा वैद्युत धारा (अर्थात् कोटरों की गति) की दिशा बताती है।

कार्यविधि: चित्र में एक p-n-p ट्रांजिस्टर का उभयनिष्ठ आधार परिपथ प्रदर्शित है। उत्सर्जक-आधार (p-n) सन्धि अग्र-अभिनत विभव VEB (1 वोल्ट से कम) पर रखते हैं और आधार-संग्राहक (n-p) सन्धि को । कुछ अधिक उत्क्रम-अभिनत विभव VCB (कुछ वोल्ट) पर रखते हैं। चूँकि उत्सर्जक (p-क्षेत्र) अग्र-अभिनत है; ।अत: इसमें उपस्थित धन ‘कोटर’ आधार की ओर चलते हैं। और ‘आधार’ (n-क्षेत्र) में उपस्थित इलेक्ट्रॉन उत्सर्जक की ओर चलते हैं।

आधार के पतला होने के कारण इसमें प्रवेश करने वाले कोटरों में अधिकांश (लगभग 98%) इसे पार करके संग्राहक तक पहुँच जाते हैं, जबकि अवशेष (लगभग 2%) कोटर आधार में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों से  संयोग कस्ते हैं। कोटर के इलेक्ट्रॉन से संयोग करते ही एक नया इलेक्ट्रॉन बैटरी VEB के ऋण सिरे से निकलकर आधार में प्रवेश करता है। ठीक इसी क्षण एक इलेक्ट्रॉन उत्सर्जक में से टर्मिनल E के द्वारा निकलकर VCB के धन सिरे पर पहुँचता है। इससे उत्सर्जक E में एक कोटर उत्पन्न हो जाता है जो आधार की ओर चलना प्रारम्भ कर देता है। स्पष्ट है कि आधार-उत्सर्जक परिपथ में एक क्षीण-धारा बहने लगती है। संग्राहक (उत्क्रम-अभिनत है तथा कोटरों के चलने में सहायक है) में प्रवेश कर जाने वाले कोटर C टर्मिनल तक पहुँच जाते हैं। किसी कोटर के C पर पहुँचते ही, बैटरी VEB के ऋण सिरे से एक इलेक्ट्रॉन आकर इसे उदासीन कर देता है। पुनः ठीक इसी क्षण एक इलेक्ट्रॉन उत्सर्जक में से टर्मिनल E के द्वारा निकलकर, बैटरी VCB के धन सिरे पर पहुँचता है। इससे उत्सर्जक में एक कोटर उत्पन्न हो जाती है जो आधार की ओर चलना प्रारम्भ कर देता है। स्पष्ट है कि संग्राहक-उत्सर्जक परिपथ में वैद्युत धारा बहती है। अतः p-n-p ट्रांजिस्टर के भीतर धारा-प्रवाह कोटरों के उत्सर्जक से संग्राहक की ओर चलने के कारण होता है और बाह्य परिपथ में इलेक्ट्रॉनों के चलने के कारण होता है। टर्मिनल B से चलने वाली धारा को ‘आधार-धारा’ iB तथा टर्मिनल C से बाहर जाने वाली धारा को ‘संग्राहक-धारा’ iC कहते हैं। iB तथा iC मिलकर टर्मिनले E में प्रवेश करती हैं; अतः इसे ‘उत्सर्जक-धारा’ iE कहते हैं। स्पष्ट है कि iE = iB +iC 

अतः p-n-p ट्रांजिस्टर के अन्दर धारा-प्रवाह कोटरों के उत्सर्जक से संग्राहक की ओर चलने के कारण होता है। आधार के बहुत पतला होने के कारण इसमें संयुक्त होने वाले कोटर-इलेक्ट्रॉनों की संख्या बहुत कम होती है। इस कारण लगभग सभी कोटर जो उत्सर्जक से आधार में प्रवेश करते हैं, संग्राहक तक पहुँच जाते हैं। अतः iC (संग्राहक-धारा), iE (उत्सर्जक-धारा) से कुछ ही कम होती है। आधार को पतला लिये जाने का कारण है कि कोटर तथा इलेक्ट्रॉन इसमें कम-से-कम संयोग कर सके।

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