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n-p-n ट्रांजिस्टर की रचना एवं कार्यविधि समझाइए।

या 

नामांकित परिपथ आरेख बनाकर n-p-n ट्रांजिस्टर की कार्यविधि समझाइए। 

या 

उपयुक्त परिपथ की सहायता से n-p-n ट्रांजिस्टर की कार्यविधि का उल्लेख कीजिए। 

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n-p-n ट्रांजिस्टर की रचना: इसमें p-टाइप अर्द्धचालक की एक पतली परत दो n-टाइप अर्द्धचालकों के छोटे-छोटे क्रिस्टलों के बीच में दबाकर रखी जाती है, [चित्र (a)]] आधार के सापेक्ष उत्सर्जक को ऋण-विभव पर तथा संग्राहक को धन-विभव पर रखा जाता है। स्पष्ट है कि उत्सर्जक-धारा (n-p) सन्धि अग्र-अभिनत है और आधार-संग्राहक (p-n) सन्धि उत्क्रम- अभिनत है। {चित्र (b) में ट्रांजिस्टर का प्रतीक प्रदर्शित है जिसमें बाण की दिशा वैद्युत धारा अर्थात् इलेक्ट्रॉनों की गति के विपरीत की दिशा बताती है।

कार्यविधि: चित्र में n-p-n ट्रांजिस्टर का उभयनिष्ठ आधार परिपथ प्रदर्शित किया गया है। इसके दोनों n- क्षेत्रों में चलनशील इलेक्ट्रॉन हैं, जबकि बीच के पतले p-क्षेत्र में +ve कोटर होते हैं। इसमें बायीं ओर के उत्सर्जक आधार (n-p) सन्धि को बैटरी से अग्र-अभिनत -विभव Ve अल्प मात्रा में दिया जाता है, जबकि दायीं ओर के आधार संग्राहक (p-n) सन्धि को बैटरी से उत्क्रम-अभिनत विभव VC अधिक मात्रा में दिया जाता है।

अग्र-अभिनत होने के कारण उत्सर्जक (n-क्षेत्र) से इलेक्ट्रॉन आधार की ओर गति करते हैं, जबकि आधार से कोटर उत्सर्जक की ओर। आधार के पतले होने के कारण अधिकतर इलेक्ट्रॉन, जो इसमें प्रवेश करते हैं, संग्राहक C तक पहुँच जाते हैं। इनमें से कुछ ही इलेक्ट्रॉन आधार में उपस्थित कोटरों से। संयोग करते हैं। जैसे ही कोई इलेक्ट्रॉन किसी कोटर से संयोग करता है वैसे ही एक नया इलेक्ट्रॉन बैटरी ve के -ve सिरे से निकलकर टर्मिनल E के द्वारा उत्सर्जक में प्रवेश करता है। ठीक इसी समय Ve का +ve सिरा आधार से एक इलेक्ट्रॉन प्राप्त करता है। इससे आधार में एक कोटर उत्पन्न हो जाता है तथा संयोग के कारण नष्ट हुए कोटर की क्षतिपूर्ति हो जाती है। इस प्रकार आधार उत्सर्जक परिपथ में धारा प्रवाहित होने लगती है।

जो इलेक्ट्रॉन संग्राहक में प्रवेश कर जाते हैं वे उत्क्रम-अभिनत के कारण टर्मिनल C को छोड़कर बैटरी VC के धन सिरे में प्रवेश करता है वैसे ही बैटरी Ve के ऋण सिरे से एक इलेक्ट्रॉन उत्सर्जक में प्रवेश करता है। इस प्रकार संग्राहक-उत्सर्जक परिपथ में भी धारा प्रवाहित होने लगती है। आधार टर्मिनल B में प्रवेश करने वाली क्षीण धारा को आधार-धारा iB तथा संग्राहक टर्मिनल C में प्रवेश करने वाली धारा को संग्राहक-धारा iC कहा जाता है। ये दोनों धाराएँ मिलकर उत्सर्जक टर्मिनल E से निकलती हैं जो कि उत्सर्जक-धारा iE है।

अतः  iE = iB +iC 

अत: n-p-n ट्रांजिस्टर के अन्दर तथा बाह्य परिपथ में धारा का प्रवाह इलेक्ट्रॉनों के कारण ही होता है।

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