प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘निन्दा रस’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक हरिशंकर परसाई हैं।
संदर्भ : लेखक का मित्र ‘क’ लेखक के साथ छल पूर्वक दिखावे की खुशी व्यक्त करते हुए यह वाक्य कहता है।
स्पष्टीकरण : लेखक सुबह की चाय पीकर अखबार देख रहे थे कि उनके एक मित्र तूफान की तरह कमरे में घुसकर उन्हें अपनी भुजाओं में जकड़ा तो उन्हें तो धृतराष्ट्र की भुजाओं में जकड़े भीम के पुतले की याद आ गयी। तब अंधे धृतराष्ट्र ने टटोलते हुए पूछा था “कहाँ है भीम? आ बेटा, तुझे कलेजे से लगा लूँ।”