प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘निन्दा रस’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक हरिशंकर परसाई हैं।
संदर्भ : लेखक यह वाक्य पाठकों से कहता है कि कुछ लोग आदतन, स्वभाव के कारण झूठ बोलते हैं।
स्पष्टीकरण : कुछ लोग हमेशा झूठ बोलते हैं। इससे उनको कोई लाभ भी नहीं होता, फिर भी झूठ बोलेंगे। ऐसे लोगों को लेखक ने निर्दोष मिथ्यावादी कहा है।