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हमारी संस्कृति में मानव जीवन के चार उद्देश्य बताए गए हैं – धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष। जीवन के इन उद्देश्यों को स्वस्थ शरीर द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है। जब व्यक्ति स्वयं सुखी एवं संतुष्ट होता है, तो दूसरों को भी सुखी बनाने का प्रयास करता है तथा समाज एवं राष्ट्र के लिए कुछ कर पाने में समर्थ होता है। इसीलिए अच्छे स्वास्थ्य को महावरदान कहा गया है। जो व्यक्ति अच्छे स्वास्थ्य की उपेक्षा कर देता है, वह मानो अपने सभी सुखों की उपेक्षा कर रहा है। दुर्बल, रोगी तथा अशक्त मनुष्य न तो स्वयं की, न अपने परिवार की, न अपने राष्ट्र की और न ही मानवता की रेवा कर सकता है। इसलिए शरीर को पुष्ट, चुस्त एवं बलिष्ठ बनाना आवश्यक है। अस्वस्थ व्यक्ति घर बैठे अपनी दुर्बलता और असमर्थता पर नौ-नौ आँसू बहाया करते हैं जबकि स्वस्थ व्यक्ति असंभव को भी संभव में बदलने की क्षमता रखते हैं। इसीलिए प्रायः देखा गया है कि दुर्बल और अशक्त व्यक्ति निराशावादी और भाग्यवादी बन जाया करते हैं।

1) जीवन के चार उद्देश्य कौन-कौन से हैं तथा उन्हें किस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है?
2) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
3) राष्ट्र और मानवता की सेवा के लिए किस बात की सर्वाधिक आवश्यकता है?
4) किस प्रकार के व्यक्ति निराशावादी और भाग्यवादी बन जाते हैं और क्यों?
5) किसे महावरदान कहा गया है?

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1) जीवन के चार उद्देश्य – धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष हैं। इनको स्वस्थ शरीर के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।
2) ‘पहला सुख निरोगी काया’।
3) राष्ट्र और मानवता की सेवा के लिए मनुष्य को चुस्त, पुष्ट एवं बलिष्ठ बनना आवश्यक है।
4) दुर्बल और अशक्त व्यक्ति निराशावादी और भाग्यवादी बन जाते हैं।
5) अच्छे स्वास्थ्य को महावरदान कहा गया है।

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