प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘सूरदास के पद’ से लिया गया है, जिसके रचयिता सूरदास जी हैं।
संदर्भ : उपरोक्त पद्यांश में एक ग्वालिन बाल कृष्ण को माखन चोरी करते हुए रंगे हाथों पकड़ लेती है और उन पर क्रोध प्रकट करती है।
व्याख्या : सूरदास इस पद में कृष्ण के माखन चोरी पर रूष्ट ग्वालिन के भावों का वर्णन करते हैं। कृष्ण की रोज़-रोज़ की माखन चोरी से एक गोपी बहुत परेशान थी। कई दिनों से इंतजार में थी कि किसी प्रकार कृष्ण को रंगे हाथों पकड़ा जाय। आज कृष्ण पकड़ में आ गए तो गोपी कहने लगी – हे कृष्ण, तुमने रात-दिन मुझे बहुत सताया है, रोज-रोज चोरी करके भाग जाते हो, किसी तरह आज पकड़ में आए हो। मेरा सारा दही मक्खन खा लिया और शरारत अलग से की कि सारे बर्तन फोड़कर चले गए। मैं अब-तक सही चोर को पहचान नहीं पाई थी, पर अब मेरे हाथ लगे हो। मैंने भी इस माखन चोर को भलीभाँति पहचान लिया है। इसके बाद गोपी ने कृष्ण के दोनों हाथ पकड़कर कहा – बोलो, अब कहाँ जाओंगे? कहो तो तुम्हारी माँ से सारा दही-मक्खन मँगवा लूँ, जितना तुमने खाया है।
विशेष : ब्रज भाषा। वर्णनात्मक शैली का उपयोग। ‘वात्सल्य रस।