प्रसंग : प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘रहीम के दोहे’ से लिया गया है, जिसके रचयिता रहीम जी हैं।
संदर्भ : प्रस्तुत दोहे में कवि रहीम ने मनुष्य की प्रतिष्ठा के संबंध में विचार प्रकट किया है।
भाव स्पष्टीकरण : रहीम इसमें पानी के तीन अर्थ बताते हुए उसका महत्व प्रतिपादित करते हैं। जिस प्रकार पानी के बिना चूना, और पानी (चमक) के बिना मोती का मूल्य नहीं है, उसी प्रकार बिना पानी के अर्थात् बिना इज्जत या मर्यादा के मनुष्य की भी कोई कीमत नहीं है। अतः पानी को बचाये रखना चाहिए।
विशेष : श्लेष अलंकार है। भाषा ब्रज और अवधी।