भारवि के पिता श्रीधर भरी सभा में उसका अपमान करते हैं। वहाँ बैठे हुए सभी पंडित भारवि के स्वर में ही बोलकर उसका परिहास करते हैं। इस बात को भारवि अपने दिल से लगा लेता है और उसके मन में यह बात घर कर जाती है कि पिता ने सब के सामने उसका अपमान किया। उनके रहते वह अपनी जिन्दगी में आगे नहीं बढ़ सकता। इस वजह से पिता के प्रति उसका क्रोध अंतिम सीमा तक पहुँच जाता है और वह अपने पिता से बदला लेना चाहता था।