प्रायश्चित को लेकर पिता और पुत्र के बीच का संवाद इस प्रकार है – भारवि क्रोध और ग्लानि से भरकर अपने पिता श्रीधर की हत्या करना चाहता था। जब उसे पता चलता है कि उसके पिता की ताड़ना के पीछे उनकी शुभकामनाएँ और मंगल कामनाएँ छिपी हैं तो वह दुखी हो जाता है। उसने अपने पिता से कहा कि वह अपने अपराध के लिए प्रायश्चित करना चाहता है। पिता कहते हैं कि पश्चाताप ही प्रायश्चित है। वे उसे माँ की सेवा कर अपने जीवन को सफल बनाने के लिए कहते हैं। भारवि कहता है – माता की सेवा तो मेरे जीवन की चरम साधना है ही लेकिन यदि आप चाहते हैं कि आपका पुत्र भारवि जीवित रहे तो उसे दण्ड दीजिए। पुत्र के बहुत कहने पर वे उसे दण्ड देते हैं – छः मास तक ससुराल में जाकर सेवा करना और जूठे भोजन पर अपना पोषण करना। भारवि उसे सहर्ष स्वीकार कर लेता है।